Sunday, May 2, 2010
यूपी की चौसरः राहुल डाल-डाल तो बसपा पात-पात!
sansadji.com
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी लगातार अपनी-अपनी सियासत को धार देने में जुटी हुई हैं। सपा ने भी अपनी गतिविधियां तेज कर रखी हैं लेकिन भाजपा मीडिया की सुर्खियों से नदारद है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी डाल-डाल तो बसपा पात-पात के पांसे बिछाने में व्यस्त है।
मायावती हरियाणा के गांव मिर्चपुर (हिसार) पहुंचने वाली थीं, जहां पूरी वाल्मीकि बस्ती दबंगों ने फूंक दी थी। माया पहुंचतीं, तब तक बूटा सिंह और राहुल गांधी पहुंच गए सहानुभूति बटोरने। इसके बाद माया का कार्यक्रम रद्द हो गया। ऐसा ही हुआ था यूपी में बरेली के उस सेतु के उद्घाटन को लेकर, जब केंद्रीय मंत्रियों के पहुंचने से पहले ही प्रदेश के मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने पुल का उदघाटन कर डाला था। इसे लेकर संसद तक हंगामा मचा था क्योंकि केंद्रीय मंत्री को पुल तक पहुंचने से पहले ही रास्ते में यूपी प्रशासन ने रोक दिया था। इस बीच एक नए घटनाक्रम ने कांग्रेस और बसपा के तल्ख संबंधों पर उस पर धुंध बिछा दी, जब संसद में कटौती प्रस्ताव आने से ऐन पहले लखनऊ में मायावती ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर कांग्रेस को समर्थन का ऐलान कर दिया। जब संसद में कटौती प्रस्ताव पेश हुआ, उसके दो दिन पहले से ही बसपा सांसद सदन में संप्रग विरोधी विपक्ष के प्रहारों पर रणनीतिक (कांग्रेस समर्थक) चुप्पी साध गए थे। कटौती प्रस्ताव पेश हुआ तो बसपा सांसद ने संप्रग का साथ दे दिया। बसपा की इस मुफ्त की मदद से कांग्रेस की भी मुंहमागी मुराद पूरी हो गई थी। इससे उत्तर प्रदेश की सियासत में साफ संदेश चला गया था कि दोनों दलों की यह अवसरपरस्त सगाई घाटे का सौदा हो सकती है। इसलिए जरूरी था कि तत्काल लीपापोती शुरू कर दी जाए। बसपा ने पहले तो चटपट पार्टी से दागी नेताओं को धकेल बाहर करने का जादू-टोना शुरू किया, फिर लखनऊ में पार्टी के प्रदेश सम्मेलन में माया द्वारा घोषणा की गई कि केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों तथा महंगाई के खिलाफ बसपा 'राज्यव्यापी जनहित आंदोलन' शुरू किया जाएगा। इसके तहत केंद्र सरकार की पहली वर्षगांठ पर 22 मई से हर बुधवार को विधानसभा क्षेत्रवार प्रदर्शन किया जाएगा। कहा गया कि केन्द्र सरकार के सौतेले व्यवहार से उत्तर प्रदेश में महंगाई बढ़ रही है। कांग्रेस धन्नासेठों की पार्टी है। कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ नहीं है। जिन प्रदेशों में कांग्रेस की सरकारें हैं वहां पर रोजी रोटी के लिए गये यूपी वालों का उत्पीड़न किया जा रहा है। कांग्रेस जातिवादी और दलित विरोधी है। कांग्रेस अम्बेडकर के नाम पर घडि़याली आंसू बहा रही है। अनुसूचित जाति के संतों के स्मारकों और पार्को के निर्माण में बाधा डाल रही है। हमारी सरकार अन्यायमुक्त, अपराधमुक्त, भयमुक्त और विकास युक्त शासन देने का वादा करती है। इसके साथ ही कहा गया कि आपराधिक छवि के अभी और लोगों को पार्टी से निकाला जाएगा और अगली सूची उनकी सरकार बनने के तीन साल पूरे होने की तिथि 13 मई को जारी की जाएगी। मीडिया ने जब मुख्यमंत्री से पूछा कि क्या कल निकाले गए लोगों में विधायक या सांसद भी शामिल हैं तो उन्होंने संकेत दिया कि पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाए जाने वालों में पूर्व सांसद, कई पूर्व विधायक और अन्य जनप्रतिनिधि शामिल हो सकते हैं। साजिश के तहत विपक्षी दलों ने उनकी पार्टी में आपराधिक छवि वालों को शामिल करवाया था। हाल के साम्प्रदायिक तनावों को भी उन्होने विपक्षी दलों की साजिश करार दिया।
उधर, जब से बसपा ने कटौती प्रस्ताव पर संसद में कांग्रेस का साथ निभाया है, उत्तर प्रदेश में सक्रिय कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह, पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा समेत ढेर सारे प्रमुख नेता सकते में हैं। अभी तक वह बसपा के झटके से मानसिक तौर पर उबर नहीं सके हैं। वह पार्टी आला कमान के बसपा की तरफदारी संबंधी रणनीति से हैरान होकर रह गए हैं। यद्यपि मौखिक तौर सफाई में कुछ भी कहा जाए, इससे राहुल गांधी की दलित राजनीति को भी प्रकारांतर से झटका लगा है। यही बसपा सुप्रीमो की रणनीति का असली मकसद भी था। सूत्र बताते हैं कि कटौती प्रस्ताव पर बसपा का समर्थन कुबूल करवाने में उन नेताओं की प्रमुख भूमिका रही, जो दिग्विजय सिंह या राहुल गांधी के परवान चढ़ते सियासी प्रयासों से शिखर नवरत्नों के बीच अपने भविष्य को लेकर अक्सर विचलित रहते हैं! बसपा का सपोर्ट लेना उनकी ही दूरगामी रणनीति का हिस्सा रहा। बसपा पात-पात तो अपने पत्ते फेट रही है, लेकिन इन दिनों कांग्रेस की ओर से खामोशी छाई हुई है। देखिए आगे, डाल-डाल तैरती राहुल गांधी की रणनीति को उनके सिपहसालार (दिग्विजय सिंह आदि) क्या रूप देते हैं। फिलहाल दिग्विजय सिंह तो केंद्रीय गृहमंत्री पी.चिदंबरम पर नजरें अटकाए हुए हैं। रीता बहुगुणा को ये मलाल बताया जाता है कि जिस पार्टी के लोगों ने उनके घर में आग लगा दी थी, उसी से कांग्रेस ने संसद में गलबहियां कर ली। वह भी फिलहाल कठिन द्वंद्व में उलझी हैं। इस बीच सपा लगातार अपने तरकस खाली करने में व्यस्त है। जहां तक भाजपा का सवाल है, वह अभी तक उमा भारती के पार्टी में शामिल होने की चर्चाओं तक सिमटी रह गई है। बीच-बीच में वरुण गांधी बनाम राहुल गांधी के तकमीने भी पढ़ लिये जा रहे हैं। बाकी पार्टी की कोई जमीनी सक्रियता नजर नहीं आ रही है।
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