Monday, May 3, 2010

ए. राजा के इस्तीफे के लिए दोनों सदनों में भारी हंगामा, संसद स्थगित


sansadji.com
स्पैक्ट्रम घोटाले की जांच और जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर हंगामे की वजह से लोकसभा और राज्यसभा में जमकर हंगामा हुआ। कार्यवाही 12 बजे और फिर दो बजे तक के लिए स्थगित हो गई। स्पैक्ट्रम घोटाले में दूरसंचार मंत्री ए. राजा के इस्तीफे की मांग पर भाजपा और अन्नाद्रमुक सदस्यों तथा सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे सपा और राजद सदस्यों द्वारा अल्पसंख्यकों को आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर किए गए भारी हंगामे के कारण लोकसभा की बैठक शुरू होने के सात मिनट बाद ही दोपहर 12 बजे तक स्थगित कर दी गई। सुबह सदन की बैठक शुरू होते ही अन्नाद्रमुक सदस्य राजा के इस्तीफे की मांग को लेकर एक समाचारपत्र की प्रतियां लहराते हुए आसन के समक्ष आकर नारेबाजी करने लगे। भाजपा सदस्य अपने स्थानों पर खड़े होकर राजा के इस्तीफे की मांग करते रहे। उधर सपा और राजद सदस्य अल्पसंख्यकों को आरक्षण की मांग को लेकर आसन के समक्ष आकर नारेबाजी करने लगे। कुछ देर बाद दोनों दलों के नेता मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद भी आसन के समक्ष आ गए। इस बीच अध्यक्ष मीरा कुमार ने प्रश्नकाल चलाने का प्रयास किया और सदस्यों को समझाने बुझाने की कोशिश करते हुए उनसे शून्यकाल में यह मामला उठाने को कहा। लेकिन हंगामा जारी रहने पर उन्होंने करीब सात मिनट बाद सदन की बैठक दोपहर 12 बजे तक स्थगित कर दी। इधर राज्यसभा में भी प्रश्नकाल नहीं चल पाया और बैठक शुरू होने पर पहले 15 मिनट के लिए तथा इसके बाद दोपहर बारह बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई। सदन की बैठक शुरू होते ही अन्नाद्रमुक सदस्यों ने राजा के इस्तीफे की मांग उठाई। पार्टी के नेता डॉ वी मैत्रेयन ने कहा कि मंत्री पर घोटाले के आरोप हैं और इस बारे में प्रश्नकाल स्थगित कर चर्चा करने के लिए नोटिस दिया गया है। सभापति हामिद अंसारी ने उनसे प्रश्नकाल चलने देने की अपील करते हुए कहा कि उनका नोटिस वर्तमान परिस्थितियों में स्वीकार नहीं किया जा सकता। मैत्रेयन ने कहा कि प्रधानमंत्री को सदन में आ कर इस मामले में स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। इस पर पार्टी के अन्य सदस्यों तथा भाजपा सदस्यों ने उनका समर्थन किया। सभापति ने प्रश्नकाल चलने देने के लिए कहा लेकिन हंगामा थमते न देख उन्होंने बैठक शुरू होने के केवल एक मिनट के अंदर ही कार्यवाही 15 मिनट के लिए स्थगित कर दी। ग्यारह बज कर 16 मिनट पर जब बैठक पुन: शुरू हुई तो सदन में वही नजारा था, जिसके कारण सभापति ने बैठक दोपहर बारह बजे तक के लिए स्थगित कर दी।
लोकसभा में गजेन्द्र सिंह राजुखेड़ी के प्रश्न के लिखित उत्तर में रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने कहा कि 1998 से 2006 की अवधि के बीच सेना के पश्चिमी कमान, चंडीगढ़ के तहत छावनी के भीतर और बाहर रक्षा भूमि पर कई अनधिकृत मोबाइल टावर स्थापित किये गए। 1998 से 2006 के दौरान रक्षा भूमि पर स्थापित 26 मोबाइल टावरों में से 12 अनधिकृत रूप से निर्मित थे। अनधिकृत रूप से निर्मित ऐसे तीन मोबाइल टावरों को हटा दिया गया है तथा एक का मामला विचाराधीन है जबकि आठ मामलों में सर्वजनिक परिसर बेदखली अधिनियम के तहत कार्रवाई शुरू की गई है। 12 सितंबर 2008 और 16 नवंबर 2009 को पत्रों के माध्यम से संचार संबंधी बुनियादी सुविधाओं में सुधार के लिए संचार टावरों के निर्माण के साथ रक्षा भूमि पर केबल बिछाने के लिए दिशा निर्देश जारी किये गए थे। सुबह 11 बजे कार्यवाही शुरू होने पर भी राजा पर हमले की कमान मैत्रेयन ने ही संभाली थी। सभापति ने आसन संभालते ही वह अपनी सीट से खड़े होकर स्पैक्ट्रम घोटाले का मुद्दा उठाने लगे थे मुद्दे पर और अन्य विपक्षी दलों के समर्थन से शोरगुल बढ़ता देख डा. अंसारी को सदन की कार्यवाही 15 मिनट के लिए स्थगित कर देनी पड़ी थी।

उल्लेखनीय है कि
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रमुक नेता एम करूणानिधि ने दूरसंचार मंत्री ए।राजा से 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन विवाद को लेकर इस्तीफा मांगने की विपक्ष की मांग को खारिज कर दियाथा। दिनों संसद में मंत्री ए।राजा को विपक्ष ने निशाने पर ले लिया था। देश में 2008 के दौरान 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन में हुए करोडों रूपये के कथित घोटाले में एक निगमित दबाव समूह के शामिल होने की खबर के परिप्रेक्ष्य में संसद में दूरसंचार मंत्री ए। राजा विपक्ष विशेषकर अन्नाद्रमुक के निशाने पर आये और उन्हें बर्खास्त करने की मांग उठी। एक दैनिक अखबार में छपी खबर के बाद अन्नाद्रमुक, भाजपा और वाम दलों ने लोकसभा और राज्यसभा में राजा को निशाना बनाया। ये लोग अखबार की प्रतियां दिखाते नजर आये, जिसमें लिखा गया था कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पास यह दर्शाने के लिए पक्के सबूत हैं कि एक हाईप्रोफाइल महिला जनसंपर्क हस्ती ने करोडों रूपये के 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में मध्यस्थ की भूमिका निभायी है। हंगामे के दौरान राजा दोनों ही सदनों में मौजूद नहीं थे। द्रमुक नेता टी। आर. बालू और उनके सहयोगियों ने दूरसंचार मंत्री के खिलाफ लगाये गये आरोपों पर लोकसभा में कड़ी आपत्ति दर्ज करायी। अन्नाद्रमुक और वाम दलों के सदस्य लोकसभा में आसन के सामने आकर नारेबाजी करने लगे। कुछ सदस्य अखबार की प्रतियां लहराते भी नजर आये। वे इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री के स्पष्टीकरण की मांग कर रहे थे। अप्रैल के दूसरे हफ्ते में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने आरोप लगाया था कि दूरसंचार मंत्री ए राजा ने देश को 26,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का चूना लगाया है। है। कैग ने बताया था कि तमाम विशेषज्ञों की सलाह दरकिनार करते हुए राजा ने नए दूरसंचार लाइसेंस जारी करने के लिए गलत और पुरानी पड़ चुकी नीति अपनाई, जिससे सरकारी खजाने को चपत लगी। कैग ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा कि पिछले कुछ महीनों में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते पद से हटाए जाने की मांग के असर से बच निकलने वाले राजा ने उस नीति पर चलते रहने का निर्णय अकेले ही किया जिसके कारण सरकारी राजस्व को 26,685 करोड़ रुपए का झटका लगा। सीबीआई दूरसंचार विभाग में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही है। सीबीआई दूरसंचार लाइसेंस दिए जाने के तौर-तरीकों की जांच कर रही है। विभाग ने साल 2008 में 1,651 करोड़ रुपए में अखिल भारतीय लाइसेंस जारी किए थे जबकि यह भाव 2001 में तय किया गया था। कैग ने अपने निष्कर्षों पर दूरसंचार विभाग से जवाब तलब किया। कैग के आरोपों पर बार-बार प्रयास करने के बावजूद दूरसंचार मंत्री का जवाब हासिल नहीं किया जा सका। विपक्षी दलों ने पिछले साल तब राजा के इस्तीफे की मांग की थी, जब सीबीआई ने स्पेक्ट्रम आवंटन की जांच शुरू की। हालांकि, राजा तब बच गए क्योंकि यूपीए गठबंधन की अहम सहयोगी दमुक राजा का पुरजोर समर्थन करने लगी। कैग ने कहा कि दूरसंचार नीति में साफ कहा गया है कि उपलब्धता के आधार पर ही रेडियो स्पेक्ट्रम का आवंटन होगा और वायरेलस लाइसेंस जारी किया जाएगा। हालांकि अगर अनुपलब्धता के चलते लाइसेंसधारक को स्पेक्ट्रम का आवंटन न हो सके तो वह वायरलाइन तकनीक के जरिए सेवाएं देने का कदम उठा सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि लाइसेंस के आवेदन पर तब भी विचार किया जा सकता है, जब स्पेक्ट्रम उपलब्ध न हो। ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया कि लिहाजा स्पेक्ट्रम उपलब्ध न होने के कारण आवेदनों पर कदम न बढ़ाने का निर्णय लाइसेंस जारी करने के नीतिगत दिशानिर्देशों के उलट था और इसके चलते एंट्री फी के रूप में सरकार को 26,685 करोड़ रुपए से हाथ धोना पड़ा। कैग ने यूएएस लाइसेंस जारी करने में भी खामी पाई थी। उसका कहना था कि मौजूदा प्रावधानों में संशोधन किए बगैर ऐसा करना गलत था। यूएएस लाइसेंस दूरसंचार सेवाएं मुहैया कराने का समग्र लाइसेंस होता है। रिपोर्ट में कहा गया कि दूरसंचार सचिव सहित तमाम विशेषज्ञों ने सुझाव दिया था कि एंट्री फी में 2001 से कोई बदलाव नहीं किया गया है, लिहाजा नए लाइसेंस जारी करने पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। सीबीआई ने पहले ही सरकार को 22,000 करोड़ रुपए का चूना लगाने के लिए दूरसंचार विभाग के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का आरोप लगाया। सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा कि विभाग के तौर-तरीकों पर सवाल उठाने वाली कैग की यह रिपोर्ट सीबीआई का पक्ष और मजबूत करेगी। प्रवर्तन निदेशालय ने भी इस प्रक्रिया के तहत लाइसेंस पाने वाली दो दूरसंचार कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
साथ ही, 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट द्वारा टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के निष्कर्ष पर किसी हस्तक्षेप से इंकार कर देने के बाद अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जयाललिता ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए. राजा को बर्खास्त करने की मांग की थी। जयललिता ने एक विज्ञप्ति में कहा था कि न्याय के हितों की रक्षा तभी हो सकती है जब राजा को केंद्रीय मंत्री पद से बर्खास्त किया जाए। अब उनके पास राजा को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का समर्थन भी है, ऐसे में उन्हें राजा को बर्खास्त करने में झिझकना नहीं चाहिए। दूरसंचार कंपनी एसटेल की ओर से दायर मामले पर विस्तार से चर्चा करते हुए जयललिता ने कहा था कि कंपनी ने दूरसंचार मंत्रालय द्वारा टूजी आवंटन की तारीखों को मनमाने ढंग से आगे बढ़ाने के कारण अदालत का रूख किया। इस मामले में 12 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने दूरसंचार मंत्रालय और राजा के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट के निष्कर्ष पर हस्तक्षेप करने से इनकार किया था।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के पिछले कार्यकाल में भी पक्षपात के ज्यादातर आरोप राजा के मंत्रालय पर ही लगे थे। इसीलिए शुरुआती दौर में राजा को दूरसंचार मंत्रालय देने से इनकार के बाद प्रधानमंत्री फिर तैयार हो गए थे, जबकि ज्यादातर लोगों को यकीन था कि राजा की दूसरी पारी सरकार के सामने और शर्मनाक स्थिति लेकर आएगी। पहली पारी में राजा ने अपनी पसंदीदा फर्मों को बाजार कीमत से काफी कम पर पर्याप्त मात्रा में स्पेक्ट्रम दिया बजाय इसके कि यह सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को दिया जाता। इससे सरकार को 10 अरब डॉलर का चूना लगा, लेकिन इस वजह से और भी नुकसान हुआ। उन्होंने स्पेक्ट्रम के साथ-साथ लाइसेंस ऐसी फर्मों को दिया जो इसका इस्तेमाल करने में फिलहाल सक्षम नहीं थे क्योंकि नेटवर्क स्थापित करने के लिए उनके पास अरबों डॉलर नहीं थे।

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