Thursday, April 29, 2010

अमर बोलेः धीरे-धीरे बोल कोई सुन ना ले


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सांसद अमर सिंह कहते हैं कि "आजकल फोन टैपिंग की बड़ी चर्चा है. मुझे एक बात की बड़ी प्रसन्नता है कि जो बात मै बोलता हूँ कुछ दिनों बाद वही बात और भाषा सभी बोलते है. जब बटला हाउस इनकाउन्टर के मुद्दे को मैने उठाया था तो सब चुप थे, यहाँ तक कि मेरे भूतपूर्व नेता श्री मुलायम सिंह जी ने भी मेरे बयान के विरोध में मुझसे कहा था कि उन्हें मुसलमानों की मानसिकता मेरे से ज्यादा पता है. और जब विधानसभा चुनावों में सपा जामिया सीट हार गई तो मुलायम सिंह जी ने मुझसे कहा, क्यों कहाँ गए आपके मुसलमान? सिर्फ सोनिया जी औपचारिक और अनौपचारिक बैठको में बटला हाउस काण्ड के न्यायिक जांच की मेरी मांग का समर्थन करती रही और अब तो मानवाधिकार आयोग से ले कर भाई दिग्विजय सिंह तक यकायक दो साल बाद जागे है.
निजी जीवन में, बातों में ताक-झाँक अनावश्यक दखलंदाजी अच्छी बात नहीं है. फोन टैपिंग को बहुत दिनों से सभी राजनैतिक दलों के नेता मुद्दा बना रहे है. लगभग सभी प्रमुख दल जो विपक्ष में जब भी होते है पक्ष पर ‘फोन टैपिंग’ का आरोप लगाते रहते है, सुश्री ममता बनर्जी और जयललिता जी तो लगभग हर क्षण अपने फोन को असुरक्षित मानती है. स्वतंत्र भारत में आज तक मेरे अलावा किसी भी नेता ने फोन टैपिंग के आरोप का प्रमाण नहीं दिया. मैने अपने फोन टैपिंग काण्ड में सर्विस प्रोवाईडर फोन कंपनी को सरकारी अधिकारिओं द्वारा मेरे फोन को टैप करने के लिखित आदेश की प्रतिलिपि पेश कर दी थी और उसी ठोस प्रमाण के आधार पर सुप्रीम कोर्ट से अपने पक्ष में राहत और केन्द्रीय सरकार को फोन टैपिंग के विरुद्ध “प्राइवेसी ला” बनाने को मजबूर किया था. मै चाहूँगा कि प्रकाश कारथ समेत सभी विपक्षी दिग्गज भी सरकार को मात्र एक पत्रिका की कहानी के आधार पर घेरने के बजाय मेरी तरह कोई ठोस प्रमाण सामने रख कर सरकार को घेरे, अन्यथा यह सारी बात “थोथा चना बाजे घना” की तरह हो जाएगी. निश्चित रूप से राजनेताओं अथवा किसी भी सभ्रांत नागरिक की बातों को सुनना उसकी स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकारों के हनन का एक गंभीर मसला है, जिसे सार्वजनिक जीवन जीवन में उठाया जाना और रोके जाना नितांत आवश्यक है. लेकिन किसी ठोस आधार की बुनियाद बगैर विश्वसनियता का आभाव इस आरोप की गंभीरता को हल्का बना देता है.
हाल में ही टाटा और मुकेश अम्बानी की संयुक्त चहेती लाइज़न अफसर की कथित टैपिंग जो अधिकृत रूप से 2G स्पेक्ट्रम के सन्दर्भ में प्रकाश में आई, उससे मुझे लगता है कि मेरी फोन टैपिंग भी संभवतः उद्योग जगत के दो बड़े भाइयों में एक भाई ने दूसरे भाई से मेरी खुली निकटता के कारण कही नीरा राडिया जैसे निजी विशेषग्य प्राइवेट लाइजन अफसर के माध्यम से तो नहीं कराई? क्यूंकि सम्बद्ध टेलीफोन आपरेटर को गृहमंत्रालय द्वारा मेरे फोन टैपिंग के आदेश पर जिस अधिकारी के हस्ताक्षर है वह जाली पाए गए थे. अनुराग सिंह नाम का एक छोटा पप्पू मेरे इस मामले में पकड़ा गया था, जो छूट भी गया. मै आज तक हैरान-परेशान हूँ कि मुंबई में बैठे इस पप्पू के बड़े पापा तक पुलिस अब तक क्यूँ नहीं पहुँची, संभवतः क्यूंकि वह बहुत पैसे और पहुँच वाला व्यक्ति है. अमेरिका जैसे संपन्न देश में ‘वाटरगेट’ पर सरकार हिल जाती है. हमारे देश में प्रशासन पप्पू तक पहुँच कर पापाओं को छोड़ देता है. नीरा राडिया की जितनी भी टैपिंग सी.बी.आई. कर ले वह रतन टाटा और मुकेश अम्बानी से जुडी है, अतीत में सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय की एयरलाइन में जहाज संभालती थी. मै आज ही बता दूँ, विवाद नीरा राडिया जैसी महिलाओं का आभूषण है और ‘जाको राखे रतन टाटा/मुकेश अम्बानी ताको मार सके ना कोय’. ख़ैर दो वर्ष पहले फोन टैपिंग से मै व्यथित था, अब सारा देश है. फोन पीड़ित क्लब में आपका स्वागत करता हूँ.
“धीरे-धीरे बोल कोई सुन ना ले,
भेद जिया का कोई कह ना दे” .............."
(अमर सिंह के ब्लॉग से साभार)

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