Tuesday, April 27, 2010

अमर ने लिखाः शरद पवार जितने जमीन के ऊपर, उतने ही अंदर!



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काफी दिनों बाद फुर्सत में सांसद अमर सिंह ने लिखा है, खूब तबीयत से लिखा है। जी भर कर लिखा है। ललित मोदी के बहाने शरद पवार पर लिखा है, सोनिया गांधी पर लिखा है, करीना कपूर से प्रीती जिंटा तक लिखा है। महाराष्ट्र से दिल्ली तक लिखा है। और क्या-क्या लिखा है, खुद ही पढ़ लीजिए जस-की-तस..........


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क्रिकेट का सरूर और हमारे थरूर
शशि थरूर और लालिर मोदी दो व्यक्ति ही नहीं है बल्कि मानव व्यक्तित्व के दो जीवंत उदाहरण है. ललित और उनके परिवार को मै वर्षों से जनता हूँ. ललित म्रदुभाशी, व्यवहारकुशल और मित्रों के मित्र है. कभी भैरों सिंह शेखावत के नजदीकी होते थे फिर लोगों की नज़रों में राजस्थान के प्रशासनिक अन्तःपुर के असली मालिक बन कर चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने मित्रों की कम और शत्रुओं की एक लम्बी जमात बनाई और एक राजनैतिक दल की नेत्री के विवादित सखा के रूप में विख्यात हो गए. किसी व्यापारी को जो औपचारिक राजनीति में ना होते हुए भी अनौपचारिक रूप से सत्ताधारी हो जाए, विरोध सहज और स्वभाविक हो जाता है. मनमौजी, अल्हड, मस्त और “दुनिया का मजा ले लो, ये दुनिया तुम्हारी है” का गीत गाते-गाते कभी यह कह देने वाले ललित कि “दुनिया को लात मारो, दुनिया सलाम करे कभी नमस्ते जी तो कभी राम-राम करे”. वह यह भूल बैठे कि उनके संरक्षक श्री शरद पवार जितने ज़मीन के ऊपर है उससे दो गुना ज़मीन के अन्दर गड़े-धसे है. महाराष्ट्र के सहकारिता आन्दोलन के स्वामी, वाई.बी. चाव्हांड ट्रस्ट के इकलौते ट्रस्टी, क्रिकेट के पुराने खिलाड़ी जग्गू दादा यानि जगमोहन डालमिया की छुट्टी करने वाले शरद दादा वह दादा है जो विदेशी मूल के प्रश्न पर सोनिया जी से लड़ते है, अलग दल बनाते है फिर सोनिया जी के दल के साथ ही महाराष्ट्र और केंद्र में सरकार गठित कर लेते है. जो गौतम अडानी, नुस्ली वाडिया, कुशाग्र बजाज और अजित गुलाबचंद्र वाधवा ऐसे उद्यामिओं को खुद और मुकेश अम्बानी को अपने बाहु प्रफुल पटेल जी से चलवाते है. जो उद्यामिओं में उद्यमी, खिलाडियो में क्रिकेटर, चीनी उद्योग वालों में शुगर बैरन, बारामती में विकास पुरुष और अपने जानी राजनैतिक दोस्तों से गले मिल कर उनको ठिकाने लगाने में माहिर है. गाय जब तक दुधारू थी जर्सी काऊ की तरह बढ़िया थी; जरा सी अपनी हरियाली से अलग दुसरे की मेढ़ पर जा पहुंची तो शरद जी का संरक्षण नहीं रहा. यह मै मानता हूँ कि सुप्रिया जी का आई.पी.एल. से कुछ लेना-देना नहीं है परन्तु पूरी मुंबई को पता है कि रीमा जैन सुप्रिया की दोस्त, श्री राजकपूर की बेटी, श्री मनोज जैन की पत्नी और करीना कपूर जी की सगी बुआ है और सैफ भाई तो करीना के साथ-साथ है भाई! ललित जी कहीं आप इस टीम के हारने के सरूर में तो थरूर से नहीं भीड़ गए? अरे!अरे! ऐसा है तो भाई, अब तो सबने पल्ला झाड लिया. मेरे एक बहुत ही निकट पारिवारिक मित्र ने मेरे समाजवादी पार्टी से निष्कासन पर कहा कि सब गल्ती तुम्हारी है, औरों के बारे में ज्यादा ना सोचो और ना ही कुछ करो, सिर्फ अपना सोचो और मेरी यह मित्र बहुत ही शालीनता से मुझे जीवन का गूढ़-मन्त्र दे गईं कि औरों का भला करने जाओ, उनके लिए हवन कराओ पर हाँथ अपना जलाओ. वैसे सब ऐसे नहीं है, मेरी मित्र प्रीती की प्रीत अब भी ललित आप के साथ है. कहानी रोचक हो गई है, इसमे पालीवुड (दो केन्द्रीय मंत्री), बालीवुड (शाहरुख खान, प्रीती जिंटा) और एक स्मार्ट आकर्षक महिला (सुनंदा) की सहभागिता ने इसे आई.पी.एल. से भी अधिक रोचक बना दिया है और रही-सही कसर बड़े-बड़े रंगबाज कद्दावर कद्रदान जैसे कि सुब्रत राय जी, मुकेश अम्बानी जी और किंग आफ गुड टाइम्स विजय माल्या जी ने अपने-अपने मालिकान हक़ से निकाल कर रख छोड़ा है.
इस कहानी ने देश की महंगाई, किसान की भुखमरी, बेरोजगार नवजवान की समस्या और तेलंगाना/पूर्वांचल की मांग, सबको भुला दिया है. आई.पी.एल देश की समस्या को भुलाने के लिए सोने वाली एक प्रभावशाली गोली है, देश के टी.वी., अखबार और नेता, जिसका सेवन कर आराम फरमा रहे है और कह रहे है कि मुल्क की फ़िक्र तो है पर बड़े आराम के साथ. भाई ललित यार हमारे कबड्डी, हॉकी, खो-खो और फुटबाल पर भी ज़रा नजर ड़ाल दो, शायद इन खेलों का भी कुछ भला हो जाए, बांकी दोस्तों के गम में अगर इस दलदल से निकाल आए तो भैया अब भूल कर भी परमार्थ मत करना. अपने संरक्षक शरद पवार को गुरु दक्षिणा दे देना, दीक्षा ना दे तो बिना अंगूठा दिए एकलव्य बन जाना, मौज करना, मस्त रहना, यह पब्लिक बड़ी बावली है हर्षद मेहता, केतन पारेख को कभी हीरो और कभी जीरो बनाती है. कभी ख़ुशी और कभी गम के इस जंजाल में आपके पड़ने पर हमें रंज और सहानुभूति दोनों है तो फिर क्रिकेट के सरूर में पहले थरूर को घूरने क्यों चले गए, सब अच्छा-भला चुपचाप चल रहा था पंडोरा बाक्स खोल दिया, वो कहते है ना कि-
“तेरा मेरा शीशे का घर, मै सोचूं तू भी सोंच,
क्यूँ तेरे हाँथ में पत्थर, मै भी सोंचू तू भी सोंच.” ..............
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