Sunday, April 25, 2010

‘मास्टर ऑफ फ्रॉड’ कौन?


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(राम-लखन की खरीखोटी)......

कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा है कि आईपीएल के विवादों में घिरे ललित मोदी ‘मास्टर ऑफ फ्रॉड’ हैं। वह कहते हैं कि आईपीएल में ‘एकाधिकार’ नहीं पनपने दिया जाता तो आज देश के सामने ऐसी नौबत नहीं आती। जब केंद्रीय कृषिमंत्री शरद पवार बीसीसीआई के अध्यक्ष थे, तब मैंने उनसे भारतीय क्रिकेट लीग (आईसीएल) को भी टूर्नामेंट आयोजित करने को मंजूरी देने की सलाह दी थी। ऐसा हो नहीं पाया और आईपीएल एकाधिकार वाला आयोजन बन गया। यह और बात है कि आईपीएल ने क्रिकेट और खिलाड़ियों के लिए बहुत अच्छा काम किया है। आईपीएल से संबंधित सभी मामलों पर केंद्रीय वित्तमंत्रालय जांच कर रहा है और इसमें जो भी दोषी पाए जाएं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
फिलहाल, यह आज के समय का सबसे ज्वलंत सवाल हो सकता है कि ‘मास्टर ऑफ फ्रॉड’ कौन? भ्रष्टाचार जिस तरह सरकार भोगने और चलाने वालों में घुल चुका है, बड़ा मुश्किल होगा कि इसके लिए किसी एक व्यक्ति को चिह्नित कर दिया जाए। इसी सवाल से मिलजुल कर ओझल हैं सुनंदा पुष्कर, प्रफुल्ल पटेल, नरेंद्र मोदी, वसुंधरा राजे, मायावती, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह यादव, सीबीआई रिपोर्टों आदि की सच्चाइयां। इसी सवाल से जुड़ी हैं मध्य प्रदेश सरकार के उन अफसरों की करतूतें, जिनके घरों से पिछले महीने करोड़ों रुपये बरामद हुए। इसी सवाल के साये में दिखती हैं कामन वेल्थ के नाम मिली अरबों रुपये की बर्बादी की वजहें, और बात दंतेवाड़ा तक जाती है, अरुंधती राय के लेख से जुड़ती है और फिर वही ताजा सवाल कि देश में कितने गरीब हैं? देश में गरीबों की संख्या बताती सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट को पिछले हफ्ते योजना आयोग के स्वीकार कर लेने के बावजूद अर्थशास्त्रियों के अनुसार अब भी सबसे बड़ा सवाल बरकरार है कि देश में गरीबों की तादाद तय करते वक्त पैमाना क्या रखा जाये? गत वर्ष दिसंबर में आयी सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट को 17 अप्रैल को योजना आयोग ने स्वीकार कर लिया। असल में, यह रिपोर्ट इसलिये भी अहम मानी जा रही है क्योंकि प्रस्तावित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के हितग्राहियों को चिह्नित करने के लिये सरकार का इस रिपोर्ट के आंकड़ों का ही इस्तेमाल करने का विचार है। सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या कुल आबादी की 37.2 फीसदी है। इस 37.2 फीसदी में प्रतिदिन 19.3 रुपये या उससे कम कमाने वाले शहरी और प्रतिदिन 15 रुपये या उससे कम कमाने वाले ग्रामीण शामिल हैं। जानी मानी अर्थशास्त्री जयती घोष बताती हैं कि विभिन्न समितियों ने गरीबों की संख्या को लेकर अपनी.अपनी सिफारिशें दी हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि जो आबादी 15 या 19 रुपये प्रतिदिन से अधिक नहीं कमाती है, क्या सिर्फ वही गरीब है। उन्होंने कहा कि तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट का सीधा संबंध खाद्य सुरक्षा विधेयक से है, लेकिन इतनी बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना को आंकड़ों में बांधना बेमानी होगा। इतने भारी भरकम तंत्र के पर्दे के पीछे छिप-छिपाकर जो लोग भी मुफ्त का माल-मलाई भकोस रहे हैं, कमोबेश सभी इस गुनाह के हिस्सेदार हैं। वे भी, जो इन महापापों को फिल्मी खबरों की चकाचौंध से ढंके रखना चाहते हैं। जिनके कैमरे कभी-कभी तफरीहन पहुंच जाते हैं उड़ीसा, बिहार और मध्य प्रदेश के वन-गह्वरों में। और मीडिया महंतों के वे चारण भी, जो अपने बाल-बच्चों को गाड़ियों, पार्कों में सैर कराने की उद्दाम लालसा लिए हुए देश के गरीबों को गाली देने लगते हैं। वे सफेदपोश कलमकार भी, जो तलछट, खुरचुन चाट कर अपने लेखों, टिप्पणियों, रचनाओं में हिटलर, लक्ष्मी मित्तल और बिल गेट्स की भाषा बोलने लगते हैं। लेकिन जान लीजिए कि इस चकाचौंध की चादर बड़ी महीन है, एक झटके में फट जानी है। फटेगी ही कभी न कभी, तब पता चल जाएगा कि मास्टर ऑफ फ्रॉड कौन-कौन थे?

1 comment:

अजय कुमार झा said...

जब उन्हें खिताब मिल ही गया है तो उन्हें फ़टाक से अब मंत्री बना ही देना चाहिए , आखिर अहर्ता तो प्राप्त कर ही ली है उन्होंने