Friday, April 30, 2010

संसद में सनसनीखेज खुलासा!


sansadji.com

लोक उपक्रम पर संसदीय समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में विदेश से नोट छपवाने के रिजर्व बैंक (आरबीआई) के फैसले की निंदा की है। समिति का कहना है कि इस फैसले से देश की आर्थिक संप्रुभता को खतरे में डाला गया था। समिति ने उन वजहों को पूरी तरह खारिज कर दिया है, जिनके कारण आरबीआई ने यह फैसला किया था।
सरकरी उपक्रमों संबंधी संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष वी. किशोर चंद्र देव ने संसद भवन परिसर में शुक्रवार को ये सनसनीखेज खुलासा किया कि 1997-98 में तत्कालीन सरकार ने अमरीका, ब्रिटेन और जर्मनी की अलग-अलग कंपनियों से सौ और पांच सौ रुपए के नोटों की एक लाख करोड़ रुपए मूल्य की भारतीय मुद्रा का मुद्रण कराने का आदेश देकर भारत की आर्थिक संप्रभुता को खतरे में डाला था। उन्होंने इस बात से इन्कार नहीं किया कि आतंकवादी या राष्ट्रविरोधी तत्वों की उन विदेशी मुद्रण कंपनियों में पहुंच हो अथवा उन कंपनियों से एक ही नंबर के अनेक नोट छाप कर कहीं भारत विरोधी शक्तियों के हाथों धीरे-धीरे देश में प्रचलित कर दिए गए हों, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचे। श्री देव ने संसद के दोनों सदनों के पटल पर भारत प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड के कामकाज की समीक्षा कर छठवां प्रतिवेदन आज पेश किया जिसमें उन्होंने साफ किया कि सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक के मुद्रा निर्माण की आउटसोर्सिग के प्रस्ताव को मंत्निमंडल को अनुमोदन हेतु सूचित कर दिया था। यह फैसला 1996-97 में किया गया था और मुद्रा की छपाई 1997-98 के दौरान हुई थी। उस समय श्री इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्नी और वर्तमान गृहमंत्नी पी. चिदम्बरम वित्त मंत्नी थे। प्रतिवेदन में कहा गया है कि समिति से पूछताछ में भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने बताया कि नोटों के बड़ी संख्या में मैले-कुचैले और कटे-फटे होने के कारण तथा भारतीय नोट मुद्रण मशीनों की दशा ठीक नहीं होने के कारण विदेशी मुद्रण एजेंसियों से नोट मुद्रण कराने का फैसला किया गया था, ताकि नोटों की मांग और आपूर्ति में संतुलन बनाए रखा जा सके। स्थायी समिति ने रिवर्ज बैंक के इन तर्को को सिरे से खारिज कर दिया जिन्हें इस असाधारण निर्णय का आधार बताया गया है। समिति ने इसे अप्रत्याशित बताया है। आरबीआई ने यूएस की अमेरिकन नोट कंपनी, ब्रिटेन की थामस डी ला रू और जर्मनी की जीसेक एंड डेवरिएंट कंसोर्टियम से क्रमश: सौ रुपये, सौ रुपये और 500 रुपये के नोट छपवाए थे। इनसे कुल एक लाख करोड़ रुपये की करेंसी छपवाई गई थी। इसके पहले या बाद में कभी भी भारतीय मुद्रा का मुद्रण देश से बाहर से करवाने का फैसला नहीं किया गया था। समिति ने साफ तौर पर कहा है कि इतनी बड़ी मात्रा में विदेश से नोट छपवाने से इस बात का जोखिम हमेशा बना रहता है कि कहीं निर्धारित संख्या से ज्यादा की राशि का मुद्रण न किया गया हो। समिति के मुताबिक देश से बाहर नोट छपवाने का फैसला करने पर विचार करना भी चिंता का विषय है। समिति के मुताबिक आरबीआई ने एक तरह से राष्ट्रीय संप्रुभता को खतरे में रख कर यह फैसला किया था। इस फैसले के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। नोटों के मानक आसानी से आतंकवादी, उग्रवादी या अन्य आर्थिक अपराधियों के हाथ जा सकते थे। यही कारण है कि समिति ने नोटों या सिक्कों की छपाई बाहर से करवाने की गतिविधियों को पूरी तरह से रोक लगाने की सिफारिश करते हुए भारत प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड (एसपीएमसीआईएल) को सुदृढ़ बनाने की बात कही है। समिति ने जाली नोटों के प्रचलन को रोकने में रिजर्व बैंक की अभी तक की भूमिका को पर्याप्त नहीं माना है। समिति ने कहा है कि उसे करेंसी नोटों की सुरक्षा संबंधी विशेषताओं को सुधारने पर और ध्यान देना होगा।

No comments: