Wednesday, April 28, 2010

समर्थऩ देने का प्रतिशोध समर्थन लेने से


sansadji.com

भाजपा ने लोकसभा में कल अनुदान मांगों पर पेश कटौती प्रस्तावों के खिलाफ मतदान करने के झारखंड के मुख्यमंत्री के कदम को ‘‘विश्वासघात’’ बताते हुए आज तुरंत प्रभाव से उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। संसद भवन परिसर में भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी की अध्यक्षता में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की आज हुई बैठक में यह निर्णय किया गया। लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज और यशवंत सिन्हा जैसे वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में हुई इस बैठक के बाद अनंत कुमार ने संवाददाताओं को बताया कि पार्टी ने शिबू सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड सरकार से समर्थन तुरंत प्रभाव से लेने का फैसला किया है।’’ उन्होंने यह भी बताया कि पार्टी ने झारखंड सरकार में शामिल भाजपा के मंत्रियों से भी इस्तीफा देने का निर्देश जारी कर दिया है। लगता है हर विपक्षी राजनीतिक दल बेसब्री से राजनीतिक प्रतिशोध के मौके का इंतजार करते रहता है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन और बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की कल कटौती प्रस्ताव अपनी गई रणनीति से तो ऐसी ही आभास मिलता है। कांग्रेस को समर्थन देते समय मायावती ने निश्चित ही अपने सांसद सिपहसालारों के साथ इस सवाल पर गंभीर मंत्रणा की होगी कि हमे क्यों कांग्रेस के पक्ष में खड़े हो जाना चाहिए। मायावती ने समर्थन की घोषणा के लिए लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस कल की, लेकिन सदन में बैठे उनके लोग एक दिन पहले से ही नई रणनीति के रास्ते चल पड़े थे। यानी समर्थन का निर्णय चार-पांच दिन पहले लिया जा चुका था, जब भाजपा आदि ने कटौती प्रस्ताव पर मतदान यानी सरकार को शक्ति परीक्षण की मुश्किल में डालने के संकेत दे दिए थे। जहां तक बात इस सवाल की है कि बसपा ने ये रणनीति क्यों अपनाई, जबकि उत्तर प्रदेश में उसकी सबसे कड़ी प्रतिस्पर्धी कांग्रेस बनी हुई है और उसने विधानसभा चुनाव में उसे (बसपा को) पछाड़कर प्रदेश की सत्ता हथियाने का अभियान सा छेड़ रखा है। साथ ही, पिछले लोकसभा चुनाव नतीजों ने उसे पहले से चौंका रखा है,...तो इस पर सूबे के सियासी समझदार कहते हैं कि जिस तरह बसपा के सवाल पर सभी गैरबसपा पार्टियां हमलावर हो जाती हैं, उसी तरह बसपा ने भी उन्ही के बीच से सबसे ताकतवर सरपंच की सांकल छूकर उनके बीच एक दूसरे के प्रति अविश्वास का बीज बोने की समझदारी दिखाई है। अब दूसरी मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी सपा ये सपने में भी सोचने से रही कि सीबीआई के सिरे से कांग्रेस सिर्फ मुलायम सिंह को ही अभयदान दे सकती है अथवा उनके जोड़ीदार लालू यादव को। मायावती कहती हैं कि संसद में लाए जा रहे कटौती प्रस्ताव पर बीएसपी इसलिए केंद्र के साथ हुई क्योंकि वह नही चाहती की इस बात का फायदा उठाकर साप्रदायिक ताकते केंद्र सरकार को गिराकर वापस शक्तिशाली हो जाएं।साथ ही वह सफाई भी देती हैं कि सरकार को कटौती प्रस्ताव पर बीएसपी के द्वारा दिए जा रहे समर्थन को सीबीआई जांच से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। जहां तक सांप्रदायिक ताकतों के शक्तिशाली बन जाने का उनका तर्क है, तो इसे मात्र राजनीतिक बहाना कहा जा सकता है। उन्हीं राजनीतिक ताकतों के बीच से संसद में लखनऊ का प्रतिनिधित्व कर रहे लालजी टंडन को वह राखी बांधती हैं। अतीत में वह भाजपा की मदद से सरकार की साझीदार भी रह चुकी हैं। और भी कई बाते हैं। जहां तक बिना कहे-पूछे सीबीआई वाली बात पर सफाई देने की उनकी कोशिश है, तो ये मिथ्यालाप बसपा कार्यकर्ताओं के गले तो उतर सकता है, किसी अन्य दल या बौद्धिक विमर्श कर्ताओं के नहीं। जबकि असली वजह ही यही रही है। मायावती पर सीबीआई की तलवार लटकाई भी इसी उद्देश्य से गई है कि जांच अंजाम तक पहुंचा दी गई तो उनकी राजनीति का क्या होगा। इसी डर ने राजग-सपा मुखियाओं को भी खुल कर नहीं खेलने दिया है। आगे मायावती और राहुल गांधी दोनों की मुश्किल ये हो सकती है कि वे समर्थन से उठे भभके पर धूल डालने के लिए आगे कौन-से कुतर्क गढ़कर पब्लिक को मोटिवेट करने में कामयाब हो पाते हैं। वैसे जिस तरह से आज राजनीति की जा रही है, जनता को इस्तेमाल किए जाने के लिए कुछ भी कहकर काम चलाया जा सकता है। जात-बल, धन-बल, सत्ता-बल जैसे तमाम पैने हथियार धरे पड़े हैं। इन्हीं आश्वस्त किए रखने वाले उपायों ने लालू प्रसाद, मुलायम सिंह आदि को भी कांग्रेस के साये में बने रहने को विवश किया।
कल का दूसरा सबसे चौंकाने वाला कारनामा रहा झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का। संप्रग के पक्ष में उनका वोट पड़ जाने से भाजपा की भृकुटियां तन गई हैं। अंदरूनी सूत्रों की बात पर यकीन करें तो सोरेन के इस कदम को हवा राजग के कोटरे से मिली थी। समर्थन की बात पर यद्यपि सोरेन कहते हैं कि सरकार के पक्ष में मतदान गलती से हुआ और झारखंड में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोई योजना नहीं है। झामुमो के सांसद और मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन भी कहते हैं कि पापा से यह गलती से हुआ। लेकिन सच्चाई ये है कि इतने बड़े राजनीतिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति के कृत्य को मानवीय भूल मान लिया जाए। बात वही कि हजम नहीं हुई। जैसे कि मायावती का सांप्रदायिक ताकतों वाला तर्क। वे तो यहां तक कहते हैं कि मतदान के दौरान पैदा हुए भ्रम के बारे में उन्होंने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी से स्थिति स्पष्ट कर दी है। सोरेन सत्ता के समीकरण में कांग्रेस को ज्यादा मुफीद पाते हुए भाजपा से प्रतिशोध का संदेश दे गए है। प्रतिशोध किस बात का, भाजपा और झामुमो दोनों को पता है। साफ तौर पर बात ये बात भी बताई जाती है कि कटौती प्रस्ताव पर मतदान के दौरान संप्रग सरकार के पक्ष में जाने पर मान लिया गया था कि झारखंड में सत्ता के नये समीकरण बनने वाले हैं। भाजपा कह भी चुकी है कि शिबू सोरेन ने विश्वासघात किया है। यशवंत सिह्ना कहते हैं कि सोरेन ने ऐसा जानबूझ कर किया है तो हमे तत्काल झारखंड में उनकी सरकार से हाथ खींच लेना चाहि। अब देखते जाइए, यूपी और झारखंड में आगे-आगे होता है क्या!










1 comment:

rajeev said...

congres ke dhobiya paat par shibu chit.jharkhand me by-election jitne ke chance nahi the.center me minister ka lalach dekar congress ne ek bar fir shibu ko jhatka diya.dusari shikar bjp hui.lekin mar hum jharkhandiyon par padi jinhe babulal ke bad koi cm nahi mila kewal chamche mile