Thursday, March 18, 2010

राहुल गांधी ने बजाई खतरे घंटी!




सुनिए जरा गौर से ये भविष्यवाणी।
सुनने में मामूली, गुनने में खतरे की घंटी जैसी।
खतरा उनके लिए जो कांग्रेसी और विपक्षी न खुद को, न पार्टी को बदलने के लिए तैयार दिखते हैं।

(खबर sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम से)

ये भविष्यवाणी दक्षिण से आई है। अमेठी के सांसद एवं कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने की है ये भविष्यवाणी। संप्रग सुप्रीमो सोनिया गांधी के निजी सचिव के घर एक समारोह में राहुल दक्षिणी भारत के तिरूचिरापल्ली पहुंचने के मौके पर ये भविष्यवाणी की। राहुल की सात महीने के भीतर तिरूचिरापल्ली की ये दूसरी यात्रा बताई जाती है। ये भी सच है कि राहुल की बातों को बहुत हल्के में लिया जा सकता है और शिद्दत से लेने पर इसके गहरे अर्थ भी समझ में आ जाएंगे। उनके कथन में कोई वैसी भविष्यवाणी जैसा तो कुछ नहीं, लेकिन है बड़े पते की। और इस भविष्यवाणी जैसी बात में कांग्रेस के मौजूदा कमजोर नेताओं ही नहीं, सभी राजनीतिक दलों के लिए 'खतरे की घंटी' जैसी एक मद्धिम-सी लेकिन झनझना देने वाली आहट सुनाई पड़ती है।
खासतौर से ये इस नजरिए से अहम कही जा सकती है कि पार्टी के जो मंत्री, सांसद, विधायक, बड़े पदाधिकारी इसे गंभीरता से लेंगे, उन्हें इससे साफ-साफ भविष्य की कांग्रेस और उसकी मंशा समझ में आ जाएगी। तिरुचिरापल्ली में किसी लड़की ने राहुल से तपाक से पूछ लिया कि 'युवा कांग्रेस की सदस्यता लेने से उसका खुद का क्या फायदा हो सकता है?' अब सुनिए राहुल गांधी का जवाब। बोले- 'जो भी तेज-तर्रार होगा, मेहनती होगा, उसका भविष्य बहुत उज्ज्वल होगा भविष्य की कांग्रेस में। भविष्य में ऐसे लोगों को ही पार्टी की प्रमुख जिम्मेदारियां सौंपी जाएंगी।' राहुल के इस कथन से जो ध्वनित हो रहा है, उस पर इतने विस्तार से प्रकाश डालने के पीछे मंशा राहुल का गुणगान या बखान करना नहीं, उन कांग्रेस नेताओं को समय से संकेत कर देना भर है कि वे नहीं सुधरे तो पार्टी उनसे मुक्ति पा सकती है। राहुल भविष्य के कांग्रेस की राजनीति जिस दिशा में ले जा रहे हैं, उससे साफ संकेत मिल रहे हैं कि अपवाद स्वरूप छोड़, पार्टी के भीतर से पूरी तरह ऐसी साफ-सफाई कर देना चाहते हैं, जो कांग्रेस को इतनी ऊर्जा से भर दे कि वह आगे सौ-दो-सौ साल तक अपने बूते, न कि चापलूसी, चारणगान, चिरौरी-मिनती, गठबंधनों, तीन-तिकड़मों के दम पर सत्ता साध सके। राहुल को पता है कि दादा के दौर की सियासत दम तोड़ चुकी है। भारतीय सियासत का ठोस 'भारतीय तथा वैश्वीकरण' तभी संभव है, जब पार्टी में तेज-तर्रार युवाओं की तादाद ज्यादा से ज्यादा बढ़ाते चलें। जिस दिन पार्टी में ऐसे लोगों का बहुमत हो जाएगा, कूड़ा-करकट खुद छंटकर बाहर चले जाएंगे। विश्वराजनीति पर नजर डालें तो ये राजनीति की विदेशी शैली है। जर्मनी जैसी। घुरहू-कतवारू के भरोसे अब भारत में आगे राजनीति करने के दिन लद चुके हैं। राहुल गांधी इस बात को अच्छी तरह तौल चुके हैं। इसलिए उनका हर अगला कदम किसी और ताजा अनुभव की भूख लिए आगे बढ़ रहा है। इससे गैरकांग्रेसी राजनीति को ये संदेश जाता है कि वह भी सबक ले। देश की राजनीति के लिए अब वह समय आने वाला है, जिसे तेज-तर्रार प्रोफेसनल्स की फौज अपने-अपने मोरचों पर बढ़ानी ही होगी। जो पार्टी समय-पूर्व ऐसा कर पाने में विफल होगी, बीच रास्ते मारी जाएगी। खोखले नारों, भेड़चाल सियासत का दम उखाड़ने के लिए भारत की राजनीति के समानांतर राहुल गांधी जिस तरह की राजनीति को ला खड़ा करना चाहते हैं, वही कुछ उनके दो वाक्यों के कथन में तिरुचिरापल्ली में उनके मुंह से निकला है। यद्यपि वह ये बात कई बार दुहरा चुके हैं और एक बड़े लीडर के लिए हौशलाआफजाई की ऐसी शब्दावलियां अपरिहार्य भी होती है, लेकिन लगता है, राहुल कह भर नहीं रहे, उसी रौ, उसी धुन और बेचैनी में जी भी रहे हैं। साथ-साथ ये संदेश देते चल रहे हैं कि वे जैसा सोच रहे हैं, कह रहे हैं, उस पर राजनीतिक अमल नहीं हुआ तो बर्बाद होना तय है। वह चाहे कांग्रेस हो या कोई और!! यही वजह है कि इन दिनों चल रही बड़ी से बड़ी सियासी हलचलों पर भी उनकी एक टिप्पणी मीडिया को सुनने को नहीं मिल रही है।

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