Saturday, February 21, 2009

चाहे जितने रूप चुरा लूं


चाहे जितना भी विष पी लूं,

चाहे जितने भी दिन जी लूं,

जीवन अपनी गंध न देगा.


चाहे जितने फूल चुरा लूं,

चाहे जितना सौरभ पा लूं,

मधुवन अपनी गंध न देगा.


मन में चाहें जितना वर लूं,

चाहे जितनी पूजा कर लूं,

चंदन अपनी गंध न देगा.


चाहे जितनी बातें लिख दूं,

आंखों की बरसातें लिख दूं,

सावन अपनी गंध न देगा.


चाहे जितनी मांग सजा लूं,

चाहे जितने रूप चुरा लूं,

दर्पन अपनी गंध न देगा.


चाहे जिसके द्वार बुला लूं,

चाहे जब सांकल खटका लूं,

आंगन अपनी गंध न देगा.


4 comments:

Anonymous said...

चाहे जितनी बातें लिख दूं,

आंखों की बरसातें लिख दूं,

सावन अपनी गंध न देगा.

sach,hai,magar kavita bhi bahut lajawab hai bahut bdhai.

समयचक्र said...

चाहे जितना भी विष पी लूं,चाहे जितने भी दिन जी लूं,जीवन अपनी गंध न देगा.
चाहे जितने फूल चुरा लूं,चाहे जितना सौरभ पा लूं,मधुवन अपनी गंध न देगा.
bahut badhiya foto lage

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन संपूर्ण प्रवाह में कही गई उम्दा भाव संजोये रचना. बधाई.

seema gupta said...

चाहे जितनी बातें लिख दूं,
आंखों की बरसातें लिख दूं
सावन अपनी गंध न देगा.
" मेहँदी सजा हाथ बहुत मन भाया मगर शब्द कुछ भावुक कर गये.."

Regards