चाहे जितना भी विष पी लूं,
चाहे जितने भी दिन जी लूं,
जीवन अपनी गंध न देगा.
चाहे जितने फूल चुरा लूं,
चाहे जितना सौरभ पा लूं,
मधुवन अपनी गंध न देगा.
मन में चाहें जितना वर लूं,
चाहे जितनी पूजा कर लूं,
चंदन अपनी गंध न देगा.
चाहे जितनी बातें लिख दूं,
आंखों की बरसातें लिख दूं,
सावन अपनी गंध न देगा.
चाहे जितनी मांग सजा लूं,
चाहे जितने रूप चुरा लूं,
दर्पन अपनी गंध न देगा.
चाहे जिसके द्वार बुला लूं,
चाहे जब सांकल खटका लूं,
आंगन अपनी गंध न देगा.
4 comments:
चाहे जितनी बातें लिख दूं,
आंखों की बरसातें लिख दूं,
सावन अपनी गंध न देगा.
sach,hai,magar kavita bhi bahut lajawab hai bahut bdhai.
चाहे जितना भी विष पी लूं,चाहे जितने भी दिन जी लूं,जीवन अपनी गंध न देगा.
चाहे जितने फूल चुरा लूं,चाहे जितना सौरभ पा लूं,मधुवन अपनी गंध न देगा.
bahut badhiya foto lage
बहुत बेहतरीन संपूर्ण प्रवाह में कही गई उम्दा भाव संजोये रचना. बधाई.
चाहे जितनी बातें लिख दूं,
आंखों की बरसातें लिख दूं
सावन अपनी गंध न देगा.
" मेहँदी सजा हाथ बहुत मन भाया मगर शब्द कुछ भावुक कर गये.."
Regards
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