वे स्कूली किताबों के दिन थे. कहिए कि कॉलेज लाइफ. युवा उमंगों, तरह-तरह की तरंगों के दिन. बोर्ड के एक्जाम चल रहे थे. मैं भी इंटरमीडिएट की परीक्षा दे रहा था. जिस रिश्तेदार के यहां रुककर एक्जाम दे रहा था, आंखों ही आंखों में एक ऐसा वाकया जवान होने लगा कि दिमाग पर इम्तेहान कम, छायावाद का सुरूर ज्यादा हिलोरें लेता रहता . जित देखूं, तित लाली मेरे लाल की. जैसे समंदर नीला हो चुका हो, आकाश सुरमई. चंपई और सोनजुही फिजाओं में लिखे जाते गीत गूंजते रात-रात भर...
चांदनी रात हो
तुम रहो, मैं रहूं
और कुछ
तुम कहो, मैं कहूं....
रात चांदी की हो
सोने के सपन बन निखरे
चंदनी तन की महक
प्यार के चमन बिखरे
सांस-सांस में सब-कुछ
तुम सहो, मैं सहूं
और कुछ
तुम कहो, मैं कहूं....
कोई बासंती इशारे सराबोर करते जाते, मन कभी गुलाब, कभी, गेंदा, कभी महुए के फूल से रसमसाता रहता. ...कानों में हर पल हरिवंश राय बच्चन के गीत ठुमकते रहते....महुआ के नीचे फूल झरे, महुआ के... जहां मैं रुका था, उस घर के सामने आधे फर्लांग की दूरी पर कुंआ था. कुंए के चारो ओर पक्की फर्श, जिस पर देर शाम तक मोहल्ले की औरतें चौपाल जमाए रहतीं.
उसका नाम था कमल, जिसने मेरी रातों की नींद उड़ा रखी. मेरे एग्जाम की ऐसी-तैसी कर रखी थी. जब कमल को लगता कि मैं उसकी तरफ नहीं देख रहा हूं, वह मुझे अपलक पढ़ती रहती. मैं भी कम न था. उसके इस तरह निहारने से अनभिज्ञ बना रहता. दो-तीन दिनो बाद ही कमल की छोटी बहन के माध्यम से प्रेमाचार परवान चढ़ने लगा. मैं प्रश्नपत्रों की सिलवटों में छिपाकर महुए के फूल भेंट किया करता. एक सप्ताह तक उधर से कोई प्रतिक्रिया नहीं रही.....
अंक मैं आइ सनेहमयी छवि सौं अकलंक मयंक-सी लागै.
नैनन-नैनन में समुझै सब, सैनन-सैनन मैं अनुरागै.
दैन न चाहत मैन कौ भेद अभेद के बावन अंगन पागै
सोवत सांझि-सी कुंतल छोरि के लाज लजाइ के भोर सी जागै
अचानक उस दोपहर कमल की गहरी मुस्कान मेरी निगाहों की जद में आ गई. वह शर्म से दोहरी हो गई. तेजी से घर के अंदर ओझल हो गई.
तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया.
पांवों की सब जमीन को फूलों से ढंक दिया....
इस बीच एक दिन एग्जाम खत्म हुआ. भारी मन से मैं अपने घर लौट चला. महीने भर बाद कमल का वह पहला और आखिरी खत मिला कि मैं जल्दी से मुलाकात को आ जाऊं. उसी शाम मैं जब वहां पहुंचा, दरवाजे पर चहल-पहल देख माथा ठनका कि कमल के साथ कुछ अनचाहा होने वाला है. उसे लड़के वाले देखने आ चुके थे. सजी-धजी डबडबायी आंखों से कमल का वह आखिरी दीदार था. तब अथाह गम था, अब खुशी होती है कि कमल एक आईएएस परिवार की मालकिन है. देश के एक महानगर में शायद वे दिन भूल चुकी हो अपनी हंसती-विहसती दुनिया में.
कोई अंतिम खत लिख देता फिर से मेरे नाम....
एक बार बस और मुझे दे देता विदा-प्रणाम!
4 comments:
कोई अंतिम खत लिख देता फिर से मेरे नाम....
एक बार बस और मुझे दे देता विदा-प्रणाम!
" वो मुलकात वो एहसास और नाजुक से ख्यालात......और वो अन्तिम खत.......यही रह जाता है जिन्दगी मे अपने साथ ......और जब याद आता है तो कभी अपने पर हँसी आती है....कभी बेबसी भी लगती है.......और ऐसे यादे कभी तनहा भी कर जाती हैं.....जो भी है..है तो अपना ही न....और खुशी इस बात की खत लिखने वाला अपनी दुनिया में खुश है महफूज है......"
Regards
तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया.
पांवों की सब जमीन को फूलों से ढंक दिया....
" और हाँ ये पंक्तियाँ खुबसुरत हैं.."
Regards
अब लगा कि फागुन आ गया.
प्यार भरे पल कभी कभी यूँ ही मिलते हैं
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