Tuesday, February 17, 2009

पीढ़ियों की प्रेम कहानी

यह तीन पीढ़ियों की प्रेम कहानी है. कोई पहली बार नहीं कही जा रही है. देश ही नहीं, पूरी दुनिया जानती है लेकिन इसे एक क्रम में जानने और पढ़ने का लालित्य ही कुछ और है. एक ने यहां प्रेम किया, दो ने वहां. तीसरा अभी बाकी है, जाने कहां प्रेम करे. उसकी क्या प्रेम कहानी बने. तो लीजिए आप भी तैयार हो जाइए पढ़ने के लिए ये तीन पीढ़ियों की जगविख्यात प्रेम कहानी. भले ही वैलेंटाइन डे गुजर चुका है. बसंत तो है...............हिंदुस्तानियों का वैलेंटाइन डे...




एडविना माउंट बेटन और जवाहर लाल नेहरू
भारत में ब्रिटेन के अंतिम वायसराय की पत्नी लेडी एडविना माउंटबेटन और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच प्रेम संबंध के बारे में जानकारी देने वाली किताब है एलेक्स वॉन टुनजेलमैन की "इंडियन समर". पुस्तक में लेखिका एलेक्स ने बताया है कि किस तरह के उनके बीच गहरे संबंध थे. यह एक वास्तविक प्रेम कथा है. दोनों के बीच प्रेम प्रत्यक्ष तौर पर राजनीतिक रूप से विस्फोटक था. यह प्रेम प्रसंग राजपाट छोड़ने की प्रक्रिया में बाधा डाल सकता था. इससे देशों के भाग्य का फैसला हो सकता था. माउंटबेटन अपनी पत्नी के नेहरू के साथ रिश्तों को बढ़ावा देते थे. माउंटबेटन एडविना को तब दिलासा दे रहे थे, जब उनके साथ हुई सगाई के कारण बनी फिलिप्स नाम के व्यक्ति के साथ लेडी माउंटबेटन के प्रेम संबंध टूट गए थे. माउंटबेटन ने तब एडविना को लिखा था कि मैं इस समय तुम्हें लेकर गहराई से चिंतित हूँ. दरअसल वह जानते थे कि उन्हें एडविना की कुछ बातें सहनी होंगी और वे इस बारे में काफी उदार थे. इसी तरह कैथरीना क्लैमा की किताब से पता चलता है कि जब नेहरू और एडविना की पहली मुलाकात हुई थी, एडविना की उम्र 39 वर्ष, नेहरू की 53 वर्ष थी. मुलाकात 1942 में सिगापुर के कान्फ्रेंस में हुई थी, जहाँ भीड़ में फँस जाने पर एडविना को नेहरू ने बचाया था. वहां परिचय के लिए वह आगे आईं, उस दिन जब पंडित जी के प्रशंसकों की भीड़ उमड़ पड़ी थी तो एडविना पैरों के बल गिरकर एक मेज के नीचे पहुंच गईं, जहां से नेहरू ने उन्हें बचाया. दोनो के बीच आपसी समझ 1947 के बाद से पनपी, जब माउंटबेटेन भारत आए. नेहरू से मुलाकात होने से पहले से एडविना के पास पुरुष मित्रों की एक लंबी सूची रही. सरोजिनी नायडू की पुत्री पद्मजा नायडू और नेहरू की मित्रता भी एक जमाने में सुर्खियों में रही है. वह नेहरू का व्यक्तित्व था जिस कारण एडविना फिर कहीँ न जुड़ सकीं. अपनी बड़ी पुत्री को पत्र लिखते समय डिकी ने उसे बताया था कि एडविना का स्वाभाव आश्चर्यजनक तरीके से बहुत मृदुल हो गया है, नेहरू से मिल कर और वे पारिवारिक माहौल को सुखद बनाने के लिये इस रिश्ते को अधिक से अधिक सहयोग देते रहे थे. एक सहज एवं मर्यादित प्रेम के रूप में इस कथा पर उँगली उठाने जैसा कुछ भी नहीं था. भारत में ब्रिटेन के अंतिम गवर्नर जनरल की पत्नी लेडी एडविना माउंटबेटन और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच प्रेम प्रसंग पर फिल्म बनाने की भी बातें भी होती रही हैं. ६० वर्ष की अवस्था में एडविना की मृत्यु के ठीक पूर्व नेहरू को उनके पत्रों द्वारा याद करना और एडविना के शव के बगल में बिस्तर पर बिखरे हुए नेहरू के पत्रों का पाया जाना सचमुच मन को आर्द्र करता है. अपनी वसीयत में एडविना ने एक सूटकेस भरे ये खत माउंटबैटन को सौंपे थे. इस रिश्ते पर माउंटबैटन की बेटी पामेला माउंटबैटन ने भी रोशनी डाली है. पामेला ने डायरी और पारिवारिक ऐलबम के दस्तावेजों को आधार किताब ' इंडिया रिमेम्बर्ड : ए पर्सनल अकाउंट ऑफ द माउंटबैट्न्स ड्यूरिंग द ट्रांसफर ऑफ पावर ' लिखी. नेहरू को मामू कहकर बुलाने वाली पामेला ने इस किताब के एक भाग को ' ए स्पेशल रिलेशन ' नाम दिया. पामेला लिखती हैं , ' मेरी मां के पहले भी कई प्रेमी रहे थे. मेरे पिता उनसे आहत थे , लेकिन नेहरू के केस में स्थिति थोड़ी अलग थी. ' अन्य मामलों की तुलना में नेहरू के साथ मेरी मां के संबंध थोड़े अलग थे. पामेला ने एक खत का जिक्र किया है , जो जून 1948 में माउंटबैटन ने अपनी बड़ी बहन को लिखा था. इस खत में उन्होंने एडविना - नेहरू के संबंधों के बारे में लिखा कि नेहरू और एडविना के बीच काफी मधुर संबंध थे. वे दोनों एक दूसरे की ओर बेहद खूबसूरत अंदाज में आकर्षित हुए. मार्च 1957 में नेहरू ने एडविना को एक खत में एडविना को लिखा कि अचानक मुझे महसूस हुआ ( और शायद तुम्हें भी हुआ हो ) कि हमारे बीच गहरा लगाव है और कोई अनियंत्रित ताकत है, जिसने हमें एक दूसरे का बना दिया. पामेला को अपने मां - बाप के साथ भारत आने के कारण अपना स्कूल छोड़ना पड़ा था. उन्होंने देश का विभाजन और दो नए राष्ट्रों का उदय देखा था. यह वह समय था जब भारत में ब्रिटिश राज खत्म हो रहा था और कश्मीर समस्या अत्यंत जटिल मुद्दे के रूप में छाई हुई थी. पंडित नेहरू खुद भी एक कश्मीरी थे , इसलिए इस समस्या के प्रति वह काफी भावुक थे. पामेला बताती हैं कि मेरे पिता मां से कहते थे कि नेहरू से इस दुखद लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दे को देखने के लिए कहो. पामेला के मुताबिक नेहरू और उनकी मां के बीच गहरे प्रेम संबंध इसलिए हुए, क्योंकि नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का देहांत हो चुका था और उनकी बेटी इंदिरा की शादी हो चुकी थी. पामेला के अनुसार एडविना और नेहरू के बीच दार्शनिक संबंध थे, न कि शारीरिक. माउंटबैटन के लंदन लौटने के बाद भी नेहरू और एडविना साल में दो बार मिलते थे.

इंदिरा प्रियदर्शनी और फिरोज बाटलीवाला
मोती लाल नेहरू की पौत्री और जवाहर लाल नेहरू तथा कमला नेहरू की पुत्री इंदिरा गाँधी का बचपन का नाम प्रिय दर्शनी था. उनका जन्म १९ नवम्बर १९१७ को इलाहाबाद में हुआ था. वे अपने माता पिता की इकलौती संतान थीं. 'भारत छोडो आन्दोलन' के दौरान इंदिरा गाँधी और फिरोज गाँधी को गिरफ्तार किया गया और एक साथ जेल में डाल दिया गया था. मई 1943 तक इलाहाबाद की नैनी जेल में रहीं. इंदिरा गांधी की शादी हुई फ़िरोज़ गांधी से. यह भी प्रेम विवाह था. हालांकि इंदिरा गांधी के नाम के साथ राजनीति का एक बड़ा अतीत जुड़ा रहा पर राजनीति की समझ, दाँवपेंच, सियासत, विदेश संबंधों और कामकाज के तरीके को लेकर इंदिरा गांधी की अपनी एक अलग पहचान भी थी. जब इंदिरा ने फिरोज बाटलीवाला से शादी का फैसला किया तो जवाहर लाल नेहरू को इस पर बहुत आपत्ति हुई थी. फिरोज गांधी इलाहाबाद के पारसी परिवार से ताल्लुक रखते थे. जवाहर लाल नेहरू ने राजनीतिक कारणों से विवाह की अनुमति नहीं दी, लेकिन बाद में 1942 में दोनों की शादी हो गई. तब महात्मा गांधी ने इंदिरा और फिरोज को अपना सरनेम गांधी देकर मिसाल कायम की थी. इसके बाद की कहानी भी दिलचस्प है. गांधी जी की गोद में खेलती इंदिरा से लेकर फिरोज से विवाह के बंधन में बंधती इंदिरा तक की तस्वीरें देश की धरोहर बनती गईं. फिरोज गांधी 48 वर्ष की आयु में इस संसार से चले गए. इलाहाबाद में जवाहर लाल नेहरू के पैतृक निवास आनंद भवन के पीछे लगा संगमरमर का शिलापट दोनों की शादी की स्मृतियों को ताजा करता है. फिरोज एक राजनेता के साथ-साथ पत्रकार भी थे. लंदन स्कूल आफ इकोनोमिक्स से पढ़ाई करने वाले फिरोज गांधी 1930 में पढ़ाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में शरीक हो गए थे. शादी के छह महीने बाद भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान फिरोज को जेल भेज दिया गया. 1944 में इंदिरा गांधी भी जेल गई. राजीव गांधी और संजय गांधी के जन्म के बाद फिरोज और इंदिरा गांधी इलाहाबाद में ही रहने लगे. फिरोज अपने ससुर जवाहर लाल नेहरू द्वारा स्थापित अखबार द नेशनल हेराल्ड के संपादक बन गए. स्वतंत्र भारत के पहले आम चुनाव में 1952 में वह रायबरेली से लडे़, जहां आज भी नेहरू-गांधी परिवार का प्रभाव बना है. पुरी के मंदिर में अछूतों का प्रवेश वर्जित है. अछूते मतलब गैर हिंदू और गैर सवर्ण. जब इंदिरा गांधी ने पारसी फिरोज गांधी से विवाह किया था तो उनके भी मंदिर में प्रवेश की बात को लेकर बवाल मचा था. इंदिरा गांधी के बाबा मोतीलाल नेहरू के पिता मुसलमान थे, जिनका असली नाम ग़ियासुद्दीन गाज़ी था और उन्होंने ब्रिटिश सेना से बचने के लिए अपना नाम गंगाधर रख लिया था. नेहरू परिवार में गांधी उपनाम का महात्मा गांधी से संबंध नहीं है. यह उपनाम इंदिरा ने फिरोज गांधी से विवाह करने पर अपनाया था. वह अक्टूबर 1984 का अंतिम दिन था. दिल्ली चुनाव से पूर्व के वातावरण में डूबी हुई थी. इंदिरा गाँधी ने दो महीनों के भीतर आम चुनाव करवाने का मन बना लिया था. उस समय उन्हें टीवी के लिए एक इंटरव्यू देना था. जैसे ही 1, सफदरजंग रोड स्थित अपने आवास से 1, अकबर रोड स्थित कार्यालय के लिए निकलीं, उनके सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें गोलियों से भून दिया था.

सोनिया एंटोनिया माएनो और राजीव गांधी
सोनिया गांधी का नाम था सोनिया माएनो. उनका जन्म 1946 में वैनेतो, इटली के क्षेत्र में विसेन्ज़ा से २० कि. मी दूर स्थित एक छोटे से गाँव लूसियाना में हुआ था. उनके पिता स्टेफ़िनो मायनो एक भवन निर्माण ठेकेदार थे और भूतपूर्व फासीस्ट सिपाही थे जिनका निधन 1983 में हुआ. उनकी माता पाओलो मायनों हैं. उनकी दो बहने हैं. उनका बचपन टुरिन, इटली से ८ कि. मी. दूर स्थित ओर्बसानो में व्यतीत हुआ. 1964 में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में बेल शैक्षणित निधि के भाषा विद्यालय में अंग्रेज़ी भाषा का अध्ययन करने गई जहाँ उनकी मुलाकात राजीव गांधी से हुई जो कि उस समय ट्रिनिटी विद्यालय, कैम्ब्रिज में पढ़ते थे. 1968 में दोनों का विवाह हुआ जिसके बाद वे राजीव गांधी की माता, इंदिरा गांधी के साथ भारत में रहने लगीं. उनकी दो संताने हैं पुत्र राहुल गांधी (जन्म 19 जून 1970) जो अभी अविवाहित हैं, और पुत्री प्रियंका गांधी, जिनका विवाह रॉबर्ट वडेरा से हुआ है. उन्होंने 1983 में भारतीय नागरिकता स्वीकारी थी. राजीव गांधी को राजनीति में कोई रूचि नहीं थी और वो एक एयरलाइन पायलेट की नौकरी करते थे. इमरजेन्सी के उपरान्त जब इन्दिरा गांधी को सत्ता छोड़नी पड़ी थी तब कुछ समय के लिए राजीव गांधी परिवार के साथ विदेश में रहने चले गए थे. परंतु 1980 में अपने छोटे भाई संजय गांधी की एक हवाई जहाज़ दुर्घटना में असामयिक मृत्यु के बाद इन्दिरा गांधी को सहयोग देने के लिए 1982 में राजनीति में प्रवेश लिया. वह अमेठी से लोकसभा का चुनाव जीत कर सांसद बने और 31 अक्टूबर 1984 को सिख आतंकवादियों द्वारा प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या किए जाने के बाद उसी दिन भारत के प्रधानमंत्री बने. उनके प्रधानमंत्रित्व काल में भारतीय सेना द्वारा बोफ़ोर्स तोप की खरीदारी में लिए गये किकबैक (घूस) का मुद्दा उछला जिसका मुख्य पात्र इटली का एक नागरिक, ओटावियो क्वाटोराची था जो कि सोनिया गांधी का मित्र था. अगले चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा. 21 मई 1991 को तमिल आतंकवादियों ने उनकी आत्मघाती विस्फ़ोट से हत्या कर दी गई थी. उस समय मर्माहत सोनिया गांधी ने कहा था कि मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूँगी, परंतु राजनीति में कदम नहीं रखूँगी. सोनिया ने 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके ६2 दिनों के अंदर 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं. अक्टूबर १९९९ में बेल्लारी, कर्नाटक और अमेठी से लोकसभा के लिए चुनाव लड़ीं, जीतीं. आज भी वह कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

5 comments:

seema gupta said...

" ya read it.....strange and amezing..."

Regards

समयचक्र said...

bahut badhiya lagi teen peedhiyo ki kahani. dhanyawaad.

डॉ .अनुराग said...

dilchasp !

Unknown said...

It is nice love story but real

Anonymous said...

desh ki sanskriti bigadne ka kam kiya