Monday, February 16, 2009

एकगो रोटी बदे बचवन में मारि होइ गइल

मुंह ढांपैं त टंगरी उघार होइ गइल .........ई त दूसरे क गीत ह.

त भइया, गोरख पांड़े त ई कुल गावत-गावत मरि गइलैं। उनहूं के भला का मालूम रहल कि समजावाद का कमाई-धमाई खाए-खसौटे वाले दलाल टाटा की थैली में मुंह मारि-मारि के सिंदूरग्राम अउर नांदीग्राम में अपने मुंहे करिखा लगाइके थेथर की तरह घूमत बानै आजकल। आ ऊ जमाने के, पांड़े जी के जमाने के बड़े-बड़े करांतिकारी लोग दिल्ली में सहाराश्री-सहाराश्री जपत हउवैं। केहू पतरकार बनत डोलत बा, जोतीबसू का जीवनी लिखत बा त केहू एहर-ओहर पूंजी के दलालन के नाबदान में थूथुन चभोरत बा। आ जे लोग नक्सलबाड़ी में बान-धनुख तनले रहे, उनहू लोगन में केहू मीरघाट-केहू तीरघाट पर आपनि-आपनि मंडली लेके बड़ा जोरदार बहस में जुटल बा साठ साल से कि हमार असली दुसमन के हउवै। एतना साल में त आदमी चाहै त पताल खोदि नावै। धिक्कार बा उनहू लोगन के अइसन जनखा गोलइती प। सुनै में आवत ह कि ऊहो लोगन में केहू क सरदार लेबी के पइसा से अमरीकी शर्ट-बुश्शर्ट पहिनी के अरिमल-परिमल परकासन चलावत बा अपने मेहरी-लइका, साढ़ू-सढ़ुआइन के साथ त केहू तराई में टांगि भचकावत रागमल्हार में डूबलि बा। आज ले केहू से एक तिनको भर नाही उखरल। उनही लोगन में केहू अमेरिका से लौटि के बीबी के पल्लू में एनजीओगीरी करत बा त केहू बिहार अउर आन्हर परदेस के जंगलन में फालूत के धांय-धांय में आपनि ताकत झोंकले बा। अरे बेसरम, तू लोगन के चिल्लू भर पानी में डूबि मरै के चाही कि देखा नैपाल में बिना कौनो डरामा-नौटंकी कैसे बहादुरन की जमाति ने ऊ रजवा के खदेड़ि देहलस...आ तू लोगन अजादी क मशालै पढ़ावति रहि गइला। कहां गइल तोहार आइसा-फाइसा. आइपीएफ-साइपीएफ.... आखिर कब ले तोहन लोगन ढुकारि मारि के दिल्ली के कोने अतरे में फोकट का बुद्धी बघारत रहबा। तोहन लोगन त आपसै में कटि मरबा, जनता के खातिर का कइबा कट्टू?देखा कठपुतली नीयर मनमोहना कैसे चीन अमरीका धांगत हउवै, मर्द त ऊ हउवै, तोहन लोग सारी पहिनि के घूमा ससुरो। किसान मजूर क कलेजा जरी त ओकरे मुंह से ईहै कुल गारी-गुपुत निकली। मरला की हद कइ नउला तोहन लोग। खैर कौनो बात नइखैं। हमरे बस में आजि एतने हउवै कि एही तरहि से तोहन लोगन क खोज खबरिया लेत रहीं भोजपुरिया धुन में। तू लोग नगरी-नगरी द्वारे वैन प लादि के किताब कापी बेचा, क्रांति-स्रांती का नाटक-नौटकी करा, गीत-गाना का सीडी-वोडी बेचा-बिकना, आपन रोजी-रोटी चलावा, बस तोहरे लोगन से आउर कुछ उखरै-परिआए क भरोसै बेकार बा। अकारथ गइलि कुल कुरबानी। जाने केतनी सहीद लोग अपने-अपने कबर में से तोहन लोगन क ई रामलीला देखति होइहैं, जनता त देखती बाय।ई बाति तोहनो लोगन पर लागू हउवै कि...फुहरी गईल दाना भुजावै, फूटि गइल खपड़ी लगल गावै।

मोती बीए

मोती बीए को भोजपुरी सिनेमा के महानायक के बतौर जाना जाता है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी मोती बीए ने फिल्मों की पटकथा से लेकर गीत तक लिखे। भोजपुरी फिल्मों में अभिनय भी किया। उनके गीत आज भी भोजपुरी क्षेत्र के लोगों की स्मृति में ताजा हैं। कहते है कि उन्होंने भोजपुरी फिल्म निर्माण को बालीवुड में एक मजबूत जमीन दी।
भोजपुरी सिनेमा को एक मुकाम तक ले जाने वाले मोती बी.ए. ब्रिटिश हुकूमत से ही भोजपुरी सिनेमा में अभिरुचि रखने लगे और 1945 तक मुम्बई में पंचोली आर्टस पिक्चर की बन रही फिल्म कैसे कहूं तथा सुभद्रा, एक कदम, काटे न कटे रे मोरा दिनवा भोजपुरी गीत फिल्म में खूब चला। इसके बाद 1947 में फिल्म साजन तथा 1948 में दिलीप कुमार और कामिनी कौशल की फिल्म नदिया के पार फिल्मों के उनके लिखे गीत सुपर डुपर हिट रहे। इन फिल्मों के गीतों से ही मोती बी ए को नयी पहचान मिली। मोती जी ने 1984 में ठकुराईन तथा गजब भइले रामा एवं 1987 में चम्पा चमेली के लिए भी गीत लिखे। उन्होंने 1984 में गजब भइले रामा में अभिनय भी किया।
भोजपुरी सिनेमा के साथ ही हिन्दी साहित्य में उनकी रचनाएं मृगतृष्णा में तनी अउरि दउर हिरना पा जइब किनारा काफी चर्चित रही। इसके अलावा छम-छम पायल बाजे, अश्वमेघ यज्ञ, हरश्रृंगार के फूल, समिधा भी लोगों के बीच चर्चित हुई। इसके अलावा सेमर के फूल, वन वन बोले ले कोइलिया के साथ ही उर्दू साहित्य के रश्के-गुहर, दर्द ए गुहर ने भी साहित्य प्रेमियों के बीच अपनी जगह बनाई।
1973-74 में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य साहित्यिक पुरस्कार ,1984 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने राहुल सांस्कृत्यायन पुरस्कार से मोती बी.ए. को अलंकृत किया। इसी वर्ष बिहार के विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ भागलपुर ने उन्हें विद्या सागर सम्मान दिया। 1998 में विश्व भोजपुरी सम्मेलन भोपाल द्वारा सेतु सम्मान एवं 2001 में साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा भाषा सम्मान से मोती बी.ए. को नवाजा गया था।

1 comment:

Mishra Pankaj said...

एक्दम सही लिखले बाड भैया