Tuesday, March 2, 2010

संसद में चार मार्च हंगामी होने के पूरे आसार

चार मार्च को संसद के भीतर किस तरह के नजारे होंगे, अभी से पता चलने लगा है। बजट पेश होने के बाद से ही यूपीए नीत के अपने दल ही जो रंग दिखाने लगे हैं, ममता बनर्जी के तेवर जितने सख्त है, करुणा निधि ने जिस तरह से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी को चिट्ठियां लिखी हैं, लालू-मुलायम व वामगंठबंधन ने जो चेतावनियां दे रखी हैं, उससे तो लगता है कि सदन का माहौल पहले से ज्यादा सरगर्म होगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्पष्ट किया है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में की गई बढ़ोत्तरी वापस नहीं ली जाएगी. सारे विरोध के बावजूद पीए ने कह दिया है कि कीमतों में बढ़ोत्तरी वापस नहीं होगी। जबकि इस तरह के अंदेशे भी सुर्खियों में हैं कि शायद डीजल की कीमत 1 रुपये वापस ले ली जाए। उधर, कृषिमंत्री शरद पवार वित्तमंत्री के सुर में सुर मिलाए हुए हैं। उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के बजट भाषण के दौरान पूरे विपक्ष ने वॉकआउट किया था और इसे ग़रीब विरोधी बजट करार दिया था। चेतावनी दी गई थी कि जब तक इस फ़ैसले को वापस नहीं लिया जाता, तब तक संसद को चलने नहीं दिया जाएगा। विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज का कहना था कि सरकार के इस क़दम से पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें बढ़ेंगी और इससे आम आदमी सीधे तौर पर प्रभावित होगा।

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अब सुनिए सत्ता की भीतरी तीरंदाजी। रक्षा मंत्री ए के एंटनी कहते हैं कि वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपनी जिम्मेदारी सही तरीके से निभाई है। यद्यपि सरकार ने उनके मंत्रालय के लिए पर्याप्त बजट का आवंटन नहीं किया है। वैसे वित्त मंत्री ने आश्वस्त किया है कि जितनी अतिरिक्त धन की जरूरत होगी वह प्रदान करेंगे। पिछले साल वेतन आयोग और बकाए की वजह से रक्षा बजट में जबर्दस्त वृद्धि की गई थी। इस साल वित्त मंत्री को काफी कठिन काम करना था। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी कुल मिलाकर सही तरह से निभाई है। रक्षा बजट के संबंध में वित्त मंत्री ने सदन के पटल पर वादा किया है कि अगर हम चाहेंगे तो वह हमें पर्याप्त धन मुहैया कराएंगे। उधर, उत्तर प्रदेश में पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ आज बीजेपी ने उत्तर प्रदेश बंद की घोषणा की है। भाजपा तेल की कीमतों में इजाफा के खिलाफ संसद से वाकआउट भी कर चुकी है। बसपा प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसे जनता को गुमराह करने वाला कदम बताया है। उन्होंने कहा सभी जानते हैं पूरे देश में महंगाई के लिए केन्द्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं न की प्रदेश सरकार। ऐसे में महंगाई पर यूपी में विरोध करने का क्या तुक है, ये तो भाजपा वाले ही जानें। हकीकत में संसद के भीतर के पूरे बजट परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो साफ-साफ यूपीए के भीतर दरार पड़ती दिख रही है। मुद्दा है बजट। केंद्र सरकार के साथी-संघाती भृकुटियां चढ़ा लिए हैं। बहुत संभव है कि चार को सदन शुरू होते ही एकजुट विपक्ष भारी हंगामा करे। फिलहाल एक ही काट नजर आता है कि सरकार पेट्रोल मूल्यवृद्धि वापस लेने की समयपूर्व घोषणा कर दे।
संसद में बजट पेश किए जाने के दिन एक ओर विपक्ष ने वॉकआउट किया, दूसरी तरफ रेलमंत्री ममता बनर्जी तमतमा कर कोलकाता रवाना हो गईं। तमिल संघाती करुणानिधि ने प्रधानमंत्री को करारी पाती भेज दी। भीतर ही भीतर चिंगारी सुलगती जा रही है। भड़की तो कई नए नजारे सामने होंगे। यूपीए के आजू-बाजू कनमना रहे हैं। देश देख चुका है कि बजट पेश होने के दौरान किस तरह लालू, मुलायम, सुषमा स्वराज हाथ-में-हाथ डाले एकजुट विरोध कर रहे थे। सुषमा तो ठीक, लालू-मुलायम यूपीए के समर्थक पार्टी अध्यक्ष हैं। आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद ही कह चुके हैं कि पूरा विपक्ष एकजुट है। सोनिया सरकार तानाशाह की तरह बर्ताव कर रही है। मुलायम सिंह की सुनिए। कहते हैं कि इस मनमानी के खिलाफ विपक्षी पार्टियाँ संयुक्त अभियान चलाएँगी। उन्होंने नारे भी लगाए कि जो सरकार निकम्मी है, वो सरकारी बदलनी है। तो इसके क्या मायने निकाले जाएं? इसलिए ममता के गुस्से को हल्के में नहीं लिया जा सकता। राज्यों से खबरें आ रही हैं कि एमपी के शिवराज सिंह चौहान, गुजरात नरेंद्र मोदी, बिहार के नितीश कुमार, उत्तरांचल के निशंक केंद्र के आम बजट पर तेवर कड़े कर लिए हैं। कोलकाता से माकपा-गठबंधन तो लाल हो ही रहा था, रही-सही कसर ममता पूरी करने की झलक दे चुकी हैं। ममता वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से बेहद खफा हो गई हैं। वजह है मालभाड़े पर सर्विस टैक्स। तृणमूल ने अपनी ही सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट के खिलाफ प्रदर्शन करने का एलान कर दिया है। प्रणब का आम बजट में रेलवे के माल ढुलाई पर सर्विस टैक्स में छूट न देना क्या कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में भारी पड़ सकता है, सवाल गूंजने लगे हैं। माकपा इस वाकये के पल-पल के हालात पर सावधान निगाहें रखे हुए है। उल्लेखनीय है कि बजट पेश होने से पहले विपक्षी ऐसे ही किसी अवसर की टोह में थे, सो लगे हाथ मिलता दिख रहा है। दीदी ने 24 फरवरी को रेल बजट में मालभाड़े में कोई बढ़ोतरी नहीं कर जो लोकप्रियता हासिल की थी, उसमें दादा ने पलीता लगा दिया है। दादा के खेल से रेल बजट की सांसत हो सकती है। यही दीदी की बड़ी चिंता है और तृणमूल की भी। तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंधोपाध्याय ने भी अपनी नाराजी साफ तौर पर जता दी है। महंगाई का बोझ पहले से भी भारी-भरकम, ऊपर से 20 हजार करोड़ रुपये के टैक्स-भार और साथ में महंगे पेट्रोल डीजल की मार! ममता, मुलायम, लालू, करुणानिधि, मायावती, यानी कांग्रेस के साथी-संघाती। कोई घर में, कोई घर के बाहर से केंद्र सरकार का तरफदार। उधर न्यूज चैनलों पर नमूदार हो रहे केंद्र सरकार के घरेलू सिपहसालार में पेट्रोलियम कीमतों में वृद्धि पर बाएं-दाएं झांक रहे हैं। लगे हाथ चौंकाने वाले बयान में दे डालते हैं। उनके बयानों से जो निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं, वे भी कम चौंकाने वाले नहीं कि क्या बढ़ते दबाव को देखते हुए सरकार पेट्रोलियम मूल्य-वृद्धि से हाथ खींच सकती है? आगे का यही सबसे बड़ा सवाल है! और इसी से जुड़ा अंदेशा साफ नजर आता है कि बजट पेश करने से पहले जो हंगामा महंगाई को लेकर लोकसभा के भीतर हो रहा था, चार मार्च को सदन शुरू होने के बाद वह विकट रूप धारण कर सकता है। भाजपा की यही मंशा है। भाजपा केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, पार्टी प्रवक्ता सिंघवी आदि के उन बयानों से और तिलमिला रही है कि बजट पेश के दौरान विपक्ष अपनी बात रखने की बजाय क्यों भाग खड़ा हुआ। यह चोट भाजपा ही नहीं, उन सब पर है, जो कल वॉकआउट कर गए थे। चार मार्च को सदन का माहौल क्या रुख अख्तियार करेगा, इस संबंध में अतीत के लोकसभा सत्रों से सहज ही कयास लगाया जा सकता है।


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