बड़े मीडिया घरानों के बीच झगड़े तो चलते ही रहते हैं लेकिन हिंदी मीडिया का अमर उजाला ग्रुप, यानी इसके मालिकान विवाद का नया इतिहास रच रहे हैं। अमर उजाला के संस्थापक मित्र स्वर्गीय डोरीलाल अग्रवाल और स्वर्गीय मुरारी लाल माहेश्वरी ने कभी सोचा भी न होगा कि उनकी औलादें कभी ऐसे अपयश की वारिस बन जाएंगी।
पहला विवाद हुआ मौजूदा अमर उजाला निदेशक अतुल माहेश्वरी-अशोक अग्रवाल बनाम अजय अग्रवाल के बीच। अतुल-अशोक जीत गए। अजय अग्रवाल हार गए तो ले-देकर उन्हें किनारे लगा दिया गया। अजय अग्रवाल ने डीएलए (D...डोरी...L....लाल A....अग्रवाल) नाम से नया मिड-डे निकाल लिया। दूसरे साझीदार यानी स्वर्गीय अनिल अग्रवाल के परिजनों ने दो मैग्जीनें निकाल लीं। अब अमर उजाला ग्रुप दो साझीदार बचे निदेशक नामक मालिक अतुल माहेश्वरी-राजुल माहेश्वरी बंधु और चेयरमैन नामक मालिक अशोक अग्रवाल।
जिस समय अजय अग्रवाल और स्वर्गीय अनिल अग्रवाल के परिजनों को अमर उजाला ग्रुप से बाहर का रास्ता दिखाया गया था, उन्हीं दिनों से ये चर्चाएं भी चल पड़ी थीं कि कभी न कभी माहेश्वरी बंधु अग्रवाल साझीदार को भी झटका देकर पूरे ग्रुप पर अपना एकछत्र राज स्थापित करने की कोशिश करेंगे। वजह यह गिनाई जा रही थी कि अखबार के माल-मत्ते में अग्रवाल पक्ष का शेयर काफी कम लगभग सिर्फ एक तिहाई है। कहा तो यहा तक जाता है कि अजय अग्रवाल को बाहर का रास्ता दिखाने से पहले ही यह रणनीति बुनी जा चुकी थी कि पहले एक भाई को बाहर करो, दूसरे को तो चुटकी बजाकर खदेड़ देंगे।
अतुल-अशोक साझीदारों के मुकदमा जीतने के कुछ महीनों तक तो ग्रुप में बड़ा फूला-फूला माहौल रहा। दो मालिकानों के सरपरस्त कॉलर उचकाए हंसी-ठट्ठा करते रहे। चापलूसियों और जीहुजूरियों के मनोहर झोके बहते रहे। धीरे-धीरे अचानक कानाफूसी शुरू हुई कि चिंगारी फूटने लगी है। अर्थात माहेश्वरी बंधु अग्रवाल साझीदार को किनारे लगाने लगे हैं। अग्रवाल जी के कान खड़े हुए। पहुंच गए अदालत कि अब तो भैया निपटाई दो मेरा मामला भी। अदालत में बैठे महापुरुषों ने वही तरकीब अपनाई, जो कहा जाता है कि अजय अग्रवाल को किनारे लगाने में अपनाई गई थी। लेकिन इस बार मारे गए गुलफाम। बांड़ तो बांड़, नौ हाथ का पगहा भी सीबीआई के हाथ आ गया है। मामला बड़ों का है, ज्यादा इतराने की जरूरत नहीं कि घूसखोरी कांड में कुछ होना-हवाना है। सीबीआई की करतूतों से भी पूरा देश वाकिफ है। आखिरकार इसे भी पट-पटा लिया जाएगा। अतुल-अशोक का हक-हिस्सा बांट-बूंट कर रफा-दफा कर लिया जाएगा।
अब इस पूरे तांडव में सियापा पीट रहे हैं कर्मचारी। कई लोग तो पेंशन लेकर ही अमर उजाला से विदा होने वाले थे। शशि शेखर के हिंदुस्तान चले जाने के बाद कई मेढकियों ने भी नाल मढ़ा ली थी। जब तक शशि शेखर अमर उजाला में रहे, सबकी घिग्घी बंधी रही। जाते ही महान संपादक होने लगे। कुछ महान संपादक जो इधर-उधर दुबके हुए थे, अमर उजाला लौटने लगे हैं। मसलन.....आदि-आदि। छोड़िए भी ऐसों की क्या चर्चा की जाए। तो अब बाकी बचे अमर उजाला के महान संपादकों से लेकर चपरासी तक एक ही बात दिन-रात सोच रहे हैं कि इधर जाऊं या उधर जाऊं! .........तो अपुन तो एक ही सुझाव है भैये कि जिधर इच्छा हो, उधर जाओ, जागरण में जाओ, हिंदुस्तान में जाओ, पाकिस्तान में जाओ, लेकिन अपने बारे में सपने में भी ऐसा न सोच लेना कि डोरीलाल अग्रवाल वाले अमर उजाला में काम कर रहे हो।
धत्तेरे की..........मारा कि पूरा अखबार तहस-नहस कर डाला। बूड़ा वंश कबीर का, उपजे पूत कमाल....के.....जय हो! जय हो!.......... राम बनाए जोड़ी, एक काना, एक कोढ़ी। तो भैया कोढ़ी चढ़ गया काने के कंधे पर, लगा अलाप लेने लंबी-लंबी। कान में उंगली डाल कर लोरकी गाने लगा, गिरा धड़ाम से सीबीआई के हौज खास में धम्म से!!
सुना है, जागरण वाले आजकल बड़े मगन हैं। खूब चटखारे ले-लेकर चर्चाएं कर रहे हैं। उन्होंने अर्थात दैनिक जागरण के कौरव-हिस्सेदारों ने अपने-अपने बांट-बखरे पहले ही कर लिये हैं।
दैनिक भास्कर का राग तो बहुत पुराना है। एक ने, दूसरे को तान रखा है कि खबरदार जो उत्तर प्रदेश में कदम भी रखा। लेकिन कुछ भाई लोग हैं कि सालों से एक ही रट लगाए हुए हैं कि यूपी में भास्कर अब आ रहा है, तब आ रहा है।
नवभारत टाइम्स का अंदरूनी अलग राग है
हिंदुस्तान का अलग राग है
और पाकिस्तान का..........?????
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