चौखट तक आंगन है.
अनगिन चित्र उकेरे तुमने
परछाईं में हार-जीत के,
बुनते-बुनते विंब हो गए
इंद्रधनुष आगत अतीत के,
इतना कौन निहारे पल-छिन
आंख-आंख दर्पन है.....कितना बड़ा तुम्हारा मन है.
थी सुख-दुख के शिलालेख पर
लिखी गई पटकथा हमारी,
हंसते-रोते शाम हो गई
सूखी जीवन की फुलवारी,
साये में हम हुए सयाने
शेष रह गया अपनापन है....कितना बड़ा तुम्हारा मन है.
स्मृतियों के क्षितिज पर लिखा
लिखता रहा तुम्हारी गाथा,
रिक्त-रिक्त रह गए हाशिये
उनको भला कौन पढ़ पाता,
जितनी पढ़ी इबारत, लो
अब उतनी-सी तुमको अर्पण है....
कितना बड़ा तुम्हारा मन है.
9 comments:
wah! narayan narayan
लाजवाब कविता । बहुत सुन्दर शब्द चयन किया आपने । भाव बहुत ही अच्छे हैं। बधाई स्वीकर करें।
मुद्दत बाद मन को छू लेने वाली ऐसी कविता पढ़ने को मिली. इतनी अच्छी रचना के लिए आपको हृदय से बधाई. काश ऐसी कविताएं रोज पड़ने को मिलें.
अनगिन चित्र उकेरे तुमने परछाईं में हार जीत के
बुनते-बुनते विंब हो गए इंद्रधनुष आगत अतीत के
इतना कौन निहारे पल-छिन....
कई बार पढ़ती रही. कविता के एक-एक शब्द एहसास को झकझोर देते हैं. सोचती हूं, काश आपके एहसास मेरी थाती बन जाते.
आपकी यह कविता मैंने आपके कविता संग्रह में पढ़ी है.यह मुझे इस संग्रह की सबसे अच्छी रचना लगी थी, पुस्तक गुड़गांव के एक इंजीनियर से प्राप्त हुई थी, आप अपने ब्लॉग पर अपना चित्र और वास्तविक नाम भी डालिए. इससे ब्लॉगर समुदाय के बीच आपकी उपस्थिति और जीवंत हो सकेगी. आप छिपा रहे हैं तो मैं भी अपनी पहचान छिपा रहा हूं, जानिए कि मैं कौन हूं?
वाह !! अतिसुन्दर !!
भाव शब्द शिल्प सब अद्वितीय........
इस सुन्दर मनमोहक कविता को पढ़वाने के लिए बहुत बहुत आभार.
इस कविता के माध्यम से आपने शब्दों एवं भावों का उत्तम सामंजस्य कायम किया है.........आभार
कविता जैसे कोई बेले की कली
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चाँद, बादल और शाम
सुन्दर मनमोहक कविता .बधाई
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