
सहना है तो उन्हें आप भरपूर सहिए।
कहना है तो उन्हें सिर्फ महान कहिए।
रहना है तो बस उनके चरणों में रहिए।
संपादक जी महान हैं,
गजब के विद्वान हैं!!
जानते नहीं हैं क्या उनकी महानता को आप।
करते रहते हैं वो मालिक-मालिक का जाप।
चलाते रहते हैं रोजगार दफ्तर घोड़ाछाप।
संपादक जी महान हैं,
गजब के विद्वान हैं!!
उनके अस्तबल में ऊंघते हैं तुलसी-कबीर।
उनकी कलम से निकलते हैं शब्दबेधी तीर।
उनके विवेक में न कोई नीर होता है न छीर।
संपादक जी महान हैं,
गजब के विद्वान हैं!!
लिखना और पढ़ना उनके लिए एक तमाशा है।
नशा उनका लोक-जीवन, दारू मातृ-भाषा है।
दफ्तर, सुअरबाड़ा बना देने का अनुभव खासा है।
संपादक जी महान हैं,
गजब के विद्वान हैं!!
रात को मुनक्का, सुबह जूस लेते हैं।
भीतर से पगार, बाहर घूस लेते हैं।
कर्मचारियों की बूंद-बूंद चूस लेते हैं।
संपादक जी महान हैं,
गजब के विद्वान हैं!!
1 comment:
kya baat hai,jai ho,gazab likha hai aapne.badhai
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