Thursday, August 28, 2008

आगरा में पत्रकारों पर लगातार हमले


सुलहकुल की नगरी में चौथे खंभे पर एक और हमला।कानून व्यवस्था पर एक और सवालिया निशान। मीडियाजगत में आक्रोश की लहर। पुलिस और प्रशासनतमाशबीनों की कतार में। पूरा शहर खौफजदा।




1...
दो दिन पहले हॉस्टल में सहारा समय, ईटीवी आदि के पत्रकारों, फोटो ग्राफरों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया।
2...
आज 28 अगस्त को दोपहर में सेंट जांस के सामने निशा नरेश के पत्रकार के पेट में चाकू भोंक दिया गया।

जागता शहर....जंग हमारी जारी है



भ्रष्टाचार के विरुद्ध
करेगा युद्ध

भ्रष्टाचार के विरुद्ध
करेगा युद्ध

भ्रष्टाचार के विरुद्ध
करेगा युद्ध


जागता शहर
न्यूज वीकली
आगरा से शीघ्र प्रकाशित

इस जंग में
आपके
रुपये सिर्फ 5

प्रदेश 3
मंडल 9
जिले 31
दिन 7
रुपये 5


.....जंग जारी है, जंग जारी रहेगी

Tuesday, August 26, 2008

जागता शहर....मीडिया की ताजा अंगड़ाई

नारा है....
जो जागे, सो आगे

भ्रष्टाचार के विरुद्ध
हम करेंगे युद्ध.....

जागता शहर
नाम है उस ताजा जुनून का, जो उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान के कुल इकत्तीस जिलों में भ्रष्टाचार केखिलाफ मीडिया-हुंकार भरने जा रहा है।
जागता शहर नाम है उस साप्ताहिक न्यूज मैग्जीन का, जिसके भीतर छिपी आग की लपटें अभी से सुदूर तक नएतरह के जन-कोलाहल का संकेत देने लगी हैं।
जागता शहर हिंदी समाचार साप्ताहिक के संपादक है अनिल शुक्ला, जिनकी खोजी रपटों ने किसी जमाने में रविवार के पन्नों से ठहरे वक्त को ललकारा था।
वह जमाना था जाने-माने पत्रकार और रविवार के संपादक एसपी सिंह का, जिन्होंने राजेंद्र माथुर के बाद हिंदी पत्रकारिता को नयी दशा-दिशा का एहसास कराया था।
अमर उजाला आगरा से कुछ ही समय बाद मुंह मोड़ कर अनिल शुक्ला एसपी सिंह की टीम में शामिल हो गए थे, फिर संडे मेल, दूरदर्शन आदि में कुछ समय रहे।
अनिल शुक्ला, जिन्होंने यह कहते हुए संडे मेल से त्यागपत्र दे दिया था कि मैं मूर्ख संपादकों को झेलते-झेलते आजिज आ गया हूं, उनकी चाकरी नहीं करूंगा।
जागता शहर के संपादक अनिल शुक्ला ने रविवार के लखनऊ, जयपुर ब्यूरो प्रमुख का दायित्व संभालने के दौरान ही लिया था रिजनल न्यूज मैग्जीन का संकल्प।
रीजन फोकस न्यूज मैग्जीन, सप्ताह में एक बार, महीने में चार बार उत्तर प्रदेश के नौ मंडलों, राजस्थान के चार जिलों और मध्य प्रदेश के तीन जिलों में पहुंचेगी।
उत्तर प्रदेश में जागता शहर का पाठक वर्ग होगा वेस्ट यूपी के 26 जिलों में...आगरा, मथुरा, फीरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, औरैया, फर्रुखाबाद, एटा, कांसीराम नगर, हाथरस, अलीगढ़, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मुरादाबाद-बरेली मंडल।
राजस्थान में जागता शहर के पाठक होंगे धौलपुर, बयाना, भरतपुर, बाड़ी के लोग और मध्य प्रदेश में ग्वालियर, भिंड, मुरैना आदि के पाठक इसे पढ़ सकेंगे।
जागता शहर सिर्फ साप्ताहिक न्यूज मैग्जीन नहीं, संपादक अनिल शुक्ला के जीवन का वह आखिरी मोर्चा है, जिसका नारा है, भ्रष्टाचार के विरुद्ध हम करेंगे युद्ध।
जागता शहर में होंगी ऐसी स्टोरी, जो उसके पाठक वर्ग ने कभी किसी अखबार या चैनल पर देखी-सुनी नहीं होगी, साथ में यूथ, महिलाओं और खेल के पन्ने भी।
जागता शहर का नारा है..जो जागे सो आगे। उसकी खोजी रपटें उन लोगों को झकझोरेंगी, जगाएंगी जो व्यवस्था की मार से थकने और ऊंघने लगे हैं।
जागता शहर में हर हफ्ते खुलेगी उनकी पोल, जो अजगर की तरह अपने आसपास को लपेटे हुए हैं। अजगर अफसर, मंत्री, नेता, अपराधी।
जागता शहर यानी जनतंत्र का प्रहरी, ढुलमुलाते लोकतंत्र की आवाज, भ्रष्ट नौकरशाहों और राजनेताओं का दुश्मन और आम आदमी की जुबान।
जागता शहर अपने जन्म से पहले ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नए मीडिया-परिदृश्य की तरह सुलगने लगा है। उसकी चिंगारियां अटकलों में गूंजने लगी हैं।
जागता शहर के संपादक अनिल शुक्ला की संपादकीय टीम में हैं ऐसे पत्रकार, जिन्हें सेठों और उनके पायताने बैठे समर्पणकारियों की चाटुकारिता रास न आयी।
उन पत्रकारों की टीम, जिन्होने जीवन भर देश के चार बड़े हिंदी अखबारों के भीतर समय गुजारते हुए भी अपनी सोच और शब्द-संपदा को सुरक्षित रखा।
वे पत्रकार, जिन्होंने बड़े-से-बैनर को बात-बात पर ठोकरें मारीं, कभी उनकी झांसा-पट्टियों में नहीं आए। वे जहां भी रहे, पेशे की लड़ाई लड़ते रहे।
...तो ऐसा है जागता शहर परिवार। पत्रकारिता में नयी संभावनाओं का वारिस। पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूरे प्रदेश और फिर चार राजधानियों तक होगा उसका सफर।
इसी संकल्प के साथ वेस्ट यूपी में नयी कोलाहल पैदा करने जा रहा है जागता शहर। अपने करोड़ों पाठकों की उम्मीदों की सुबह लिये आ रहा है वह शीघ्र सितंबर में.....

Saturday, August 23, 2008

ऐ हरामियों! तुमको इससे क्या!!

मैं पागल हूं,
मैं मरता हूं,
जो जी आता है
करता हूं
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!

बहुत दूर हूं,
बेसऊर हूं,
मैं रिक्शा हूं
हंसिया और हथौड़ा हूं,
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!

बोलचाल में, ठाट-बाट में
चाहे जितने आगे हो,
पढ़ते रहो
निराला, तुलसी, मुक्तिबोध को,
खेत छोड़कर तुम सब
दिल्ली भागे हो,
मैं मनुष्य हूं, लड़ना मेरा पेशा है
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!

होगा तेरे बाप का धंधा,
कोठी-कूलर-एसी-पंखा,
मैं तो दफ्तर-दफ्तर
भरी दुपहरी में
चप्पल-चप्पल घिसता
और घिसाता हूं,
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!

मैं औलादी
मैं फौलादी
बख्तरबंद अंधेरे में
तरकस के सौ-सौ तीर चलाता हूं
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!

हैवानो से दिल्ली,
कैसे-कैसे शैतानों से भरी मुंबई,
चक्क चेन्नई,
कलकत्ता में टाटा जी के लखटकिया से
वामपंथ पर फिल्म बनाता हूं
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!

Thursday, August 21, 2008

मारे गए फलाने जी

बात बढ़ी तो मारे गए फलाने जी।
चढ़ा-चढ़ी में मारे गए फलाने जी।

फूल के कुप्पा हुए जा रहे थे यूं ही,
आन पड़ी तो मारे गए फलाने जी।

धीर-वीर-गंभीर मुखौटा हटते ही
तड़ातड़ी में मारे गए फलाने जी।

सन् सैंतालिस से एके-47 थे,
एक छड़ी में मारे गए फलाने जी।

छोटी-छोटी में तो बात-बहादुर थे,
बड़ी-बड़ी में मारे गए फलाने जी।

मुर्ग-मुसल्लम में पूरी जिंदगी कटी,
दाल-कढ़ी में मारे गए फलाने जी।


Saturday, August 16, 2008

वह जन मारे नहीं मरेगा

केदारनाथ अग्रवाल

जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है
जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
जो रवि के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा

जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा

यह जो नन्हा है भोला भाला है

अली सरदार जाफरी

मां है रेशम के कारखाने में
बाप मसरूफ सूती मिल में है
कोख से मां की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है

जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारखानों के काम आयेगा
अपने मजबूर पेट की खातिर
भूक सर्माये की बढ़ाएगा

हाथ सोने के फूल उगलेंगे
जिस्म चांदी का धन लुटाएगा
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रोशन
खून इसका दिए जलायेगा

यह जो नन्हा है भोला भाला है
खूनीं सर्माये का निवाला है
पूछती है यह इसकी खामोशी
कोई मुझको बचाने वाला है!