मैं पागल हूं,
मैं मरता हूं,
जो जी आता है
करता हूं
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!
बहुत दूर हूं,
बेसऊर हूं,
मैं रिक्शा हूं
हंसिया और हथौड़ा हूं,
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!
बोलचाल में, ठाट-बाट में
चाहे जितने आगे हो,
पढ़ते रहो
निराला, तुलसी, मुक्तिबोध को,
खेत छोड़कर तुम सब
दिल्ली भागे हो,
मैं मनुष्य हूं, लड़ना मेरा पेशा है
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!
होगा तेरे बाप का धंधा,
कोठी-कूलर-एसी-पंखा,
मैं तो दफ्तर-दफ्तर
भरी दुपहरी में
चप्पल-चप्पल घिसता
और घिसाता हूं,
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!
मैं औलादी
मैं फौलादी
बख्तरबंद अंधेरे में
तरकस के सौ-सौ तीर चलाता हूं
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!
हैवानो से दिल्ली,
कैसे-कैसे शैतानों से भरी मुंबई,
चक्क चेन्नई,
कलकत्ता में टाटा जी के लखटकिया से
वामपंथ पर फिल्म बनाता हूं
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!
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