बात बढ़ी तो मारे गए फलाने जी।
चढ़ा-चढ़ी में मारे गए फलाने जी।
फूल के कुप्पा हुए जा रहे थे यूं ही,
आन पड़ी तो मारे गए फलाने जी।
धीर-वीर-गंभीर मुखौटा हटते ही
तड़ातड़ी में मारे गए फलाने जी।
सन् सैंतालिस से एके-47 थे,
एक छड़ी में मारे गए फलाने जी।
छोटी-छोटी में तो बात-बहादुर थे,
बड़ी-बड़ी में मारे गए फलाने जी।
मुर्ग-मुसल्लम में पूरी जिंदगी कटी,
दाल-कढ़ी में मारे गए फलाने जी।
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2 comments:
सही है!!
बहुत दिन बाद एेसा लगा कि नार्वी की गजल पढ़ रहा हूं। मुंहफट जी इस सिलसिले को जारी रखना।
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