Tuesday, February 16, 2010

मुलायम और अमर दोनों गहरे अवसाद में!



उत्तर प्रदेश की राजनीति में आगामी विधानसभा चुनाव कई नए समीकरण रचने जा रहा है। यद्यपि अभी चुनाव में देर है, लेकिन राजनीतिक महारथी अपनी-अपनी सियासी साधना में अस्त-व्यस्त होने लगे हैं। अब तक इस विशाल प्रदेश की राजनीति पिछले कई चुनावों (कांग्रेस के पैर उखड़ने के बाद) से मुख्यतः तीन ध्रुवों में बंटी हुई थी, सपा, बसपा और भाजपा। इनमें सपा और बसपा का प्रतिद्वंद्वी-ध्रुवीकरण सीधे तौर पर जातीय जुमलों के सहारे मजबूत हुआ। तय था कि जिसका जातीय गणित जितना जनसंख्या बहुल होगा, सत्ता उतनी उसके निकट होगी। शुरू से ही समाजवादी पार्टी की पहचान के साथ दो अकाट्य लांछन रहे हैं। यादववाद और परिवारवाद। अमर सिंह के सपा-प्रवेश के बाद और कुछ हुआ-न-हुआ हो, सपा के माथे से यह कलंक मिटने-सा लगा था, क्योंकि राजपूत वोटबैंक जोड़ने की अमर की कसरत कुछ नई कहानी कहने लगी थी। मुसलिम धुंध की चादर तनी हुई थी, साथ ही अनिल अंबानी जैसे कारपोरेट घराने और फिल्मी चकाचौंध ने भी पार्टी के लिए नए तरह के सियासी तड़क-भड़क का आगाज किया। ध्यान करें कि पिछले कुछ सालों में मुलायम के सत्ता-बल के पीछे ऐसी ताकतों का मजबूत हाथ था और उसी बूते पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर हुंकार भरने की हैसियत तक पहुंची थी। वरना उसका वजूद उत्तर प्रदेश से बाहर नगण्य-सा था। अमर की मलाई सरपोट लेने के बाद आज सपा के कुछ लोग चाहे खट्टी-मीठी जैसी भी डकारें लें, उनकी कोशिशें कई मोरचों पर रंग लाई थीं। पार्टी के हाथ दिल्ली-मुंबई होते हुए अमेरिका तक पहुंचने लगे थे। आज की राजनीति का जैसा चरित्र है, उसमें अमर सिंह सपा के एक मजबूत स्तंभ और जरूरत हो चले थे। इस बात को मुलायम सिंह यादव अच्छी तरह समझते ही नहीं थे, निभाने की अंतिम समय तक कोशिशें भी करते रहे, लेकिन पार्टी के भीतर परिवारवाद की जड़ें जितनी गहरे पैठ चुकी थीं, अब ऐसे करारे अंतरद्वंद्व में उसका कोई ठोस समाधान सपा सुप्रीमो के भी बूते का नहीं रह गया था। और इस परिवारवादी ठसक को हवा दे रहे थे, वे लोग, जो अमर सिंह के नाते अपना कद गंवा बैठे थे। यही मुलायम सिंह की सबसे बड़ी चूक थी कि उन्होंने परिवारवाद को पार्टी में इस हद तक सख्त हो जाने दिया कि आज उन्हें खुद लाचारी के दिन देखने पड़ रहे हैं। सूत्रों की मानें तो देश का मीडिया अमर प्रकरण पर चाहे जो कुछ कहे, मुलायम सिंह कत्तई इस वाकये को पार्टी के लिए बहुत बड़े राजनीतिक हादसे के रूप में ले रहे हैं। इतना तनाव में तो वह अयोध्या-प्रकरण के दौरान भी नहीं रहे। उस दौरान इटावा में सपा सुप्रीमो ने इस रिपोर्टर से कहा था कि अफसरों के कारण मुझे अयोध्या-प्रकरण में सही निष्कर्ष तक पहुंचने में मुश्किल हुई। वह सत्ताच्युत होने के बाद जब प्रायश्चित के ऐसे शब्द बोल रहे थे, तब भी उनके माथे पर इतना बल नहीं था, जितना आज है। अगर समाजवादी पार्टी से आजम खां की विदाई हुई, राज बब्बर किनारे किए गए तो उसमें सिर्फ अमर सिंह की गलती नहीं थी, बल्कि पार्टी के कोर कमेटी स्तर से ऐसे निर्णय लिये गये थे। अमर सिंह के नाते पार्टी के अंदरखाने इतनी मुश्किल जरूर आकार लेने लगी थी कि जातीय स्वाद चखने वालों की जुबान कसैली होती जा रही थी। वजह थे अमर सिंह। जब पिछले विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव में सपा का मुसलिम वोट बैंक दरकने लगा, सत्ता के पाए से हाथ फिसलते गए तो उसकी वजहें भी सिर्फ अमर सिंह पर थोपना एक बड़ी अदूरदर्शिता रही। सबूत के तौर पर हाल के विधान परिषद चुनाव को याद किया जा सकता है। यहां तथ्यतः उल्लेख करना जरूरी नहीं, फिर भी इतना कहा जा सकता है कि पार्टी के परिवारवादी ढांचे में जब से मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव की स्थापना हुई है, चचाजात भाई रामगोपाल यादव और भाई शिवपाल यादव के एकाधिकार को झटके लगने लगे थे। मुलायम सिंह इस बात से भी पूरी तरह वाकिफ थे और इस मसले पर भी उन्हें लाचार होकर चुप्पी साधे रहना पड़ गया। अमर सिंह पर केंद्रित प्रकरण उसी पारिवारिक एकाधिकार की पीड़ा की छटपटाहट में रचा गया। वरना आज अमर सिंह पर जिस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं, आज की राजनीति में वे सब जायज हो चले हैं। हर पार्टी उन्हीं तरह के लटके-झटकों के भरोसे चल रही है। कौन-सा दल ऐसा है, जिसे चुनावों में फिल्मी सितारों की तलब नहीं होती? कौन-सी पार्टी ऐसी है, जिसे दम बटोरने के लिए कारपोरेट पूंजी की जरूरत नहीं? याद करिये कि जब संजय दत्त की लखनऊ में धमक हुई थी, पार्टी की बांछें खिल उठी थीं। ऐसा ही कुछ पूर्व में अमिताभ और राज बब्बर की पार्टी में हाजिरी के समय हुआ था। मोहन सिंह और रामगोपाल यादव आज अमर सिंह के बहाने जिस समाजवाद की बातें करते हैं, वह तो सपा में कभी रहा ही नहीं। सपा कत्तई समाजवादी पार्टी नहीं, वह सिर्फ नाम से ऐसी है। इस बात से भी मुलायम सिंह अच्छी तरह वाकिफ थे, हैं और सच्चाई के नाते भी आज की मुश्किल में उन्हें अपने परिजनों की अक्ल पर तरस आता है। सपा सुप्रीमो तो अपने अथक प्रयासों से पार्टी को तमाम तरह के राजनीतिक प्रयोगों (मुसलिम समीकरण, गठबंधन आदि) के सहारे इस शानदार मोकाम तक ले आए थे। अब जो पार्टी के भीतर आजम खां को लेकर सियापा पीटा जा रहा है, इसकी सच्चाई से भी कौन वाकिफ नहीं। मुलायम सिंह भी इससे खूब अच्छी तरह परिचित हैं। आजम खां प्रदेश या देश के मुस्लिमों के जिगर के नेता नहीं, बल्कि अयोध्या प्रकरण पर अपने बड़बोलेपन के नाते सुर्खियों में छाते चले गए। जहां तक राज बब्बर का सवाल है, वह भी सपा में शामिल होने से पहले कोई जमीनी नेता नहीं रहे। सपा के मंच से डॉयलॉग बोल-बोल कर ही उन्होंने भी अपनी जमीन पुख्ता की थी, हां आजम खां की अपेक्षा उनमें आज की सियासत को समझने की तमीज ज्यादा थी, इसलिए समय रहते कभी वीपी सिंह तो आज कांग्रेस का दामन थाम कर अपनी राजनीतिक इज्जत बचाए हुए हैं। हकीकत में वह जितने सशक्त अभिनेता हैं, उतने कामयाब राजनेता नहीं। वह राजनीतिक निष्ठा ताक पर रखकर कांग्रेस का दामन नहीं थामते तो फिल्मी दुनिया के बाहर उन्हें आज कोई जानता भी नहीं। इन सारी बातों से नेताजी यानी मुलायम सिंह बहुत अच्छी तरह से वाकिफ हैं। इसलिए अमर सिंह के खिलाफ आज तक उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा, जो मीडिया का मसाला बने। न ही अमर सिंह के खिलाफ सपा के कुछ बड़े ओहदेदारों द्वारा दिए जा रहे अमर विरोधी बयानों में उनकी कोई ऐसी इच्छा शामिल है। आज कोई नहीं जानता कि मुलायम सिंह किन मनस्थितियों से गुजर रहे हैं। जहां तक अमर सिंह की बात है, वह सपा के प्रति अपनी सारी राजनीतिक निष्ठा के बावजूद जिस तरह के मनोवेग और हड़बड़ी की चूक पहले करते रहे, आज भी लगातार कर रहे हैं। मुलायम सिंह को निशाने पर ले रहे हैं, जबकि यहां बताई गईं तमाम हकीकतों से वह भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। कुल मिलाकर कहें तो आज मुलायम सिंह और अमर सिंह दोनों अपनी-अपनी गलतियों का खामियाजा भुगत रहे हैं। इसका फायदा अगले चुनावों में बसपा और कांग्रेस को होने जा रहा है। यदि सपा कांग्रेस से हाथ मिला ले, तो भी उसकी औकात नंबर तीन की ही रहनी है। बेहतर होगा कि ........अमर सिंह और मुलायम सिंह फिर से साथ हो लें वरना आने वाला समय पार्टी और दोनों धुरंधरों की हैसियत को और मटियामेट कर सकता है। ताली बजाएंगे विपक्षी! कुल मिलाकर आज मुलायम और अमर दोनों गहरे अवसाद में हैं। सपा का अंधेरा भविष्य दोनों को मथ रहा है। एक को भीतर, दूसरे को बाहर से! (रिपोर्टरः सांसदजी डॉट कॉम से साभार)

( सांसदजी डॉट कॉम sansadji.com ... परक्रमशः जारी...... आगे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का भविष्य)

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