कौन कहता है कि प्रभाकरण की लड़ाई खत्म हुई
कौन कहता है कि प्रभाकरण मारा गया.
किसे पता नहीं कि न कभी तमिल स्वाभिमान मरा है
न उसके संघर्षों का अंत हुआ है.
पीढ़ियां लड़ेंगी प्रभाकरण की लड़ाई
क्योंकि वह लड़ाई है
सिंघली नस्लीयता के खिलाफ
आदमखोर व्यवस्था के खिलाफ
ग्लोबल पागलपन के खिलाफ,
वे लड़ाइयां कभी नहीं हारी जातीं,
जिनके समपनों में होती है मनुष्यता की आजादी,
जिनके सपनों में होता है सिर्फ मनुष्य
सिंहली या तमिल जातिवाद नहीं,
जिनके सपने हमेशा जिंदा रहते हैं.
जिस कौम के सपने जिंदा रहते हैं,
उस कौम के सपनों के लिए कुर्बान हो जाने वाले
कभी मरा नहीं करते,
और उनकी लड़ाइयों का अंत
कभी न
गुजरात में होता है
न विएतनाम में,
न अयोध्या में होता है
न अफगानिस्तान और इराक में.
उनकी लड़ाइयों का अंत होता है
हिटलर, मुसोलिनी और बुश की कब्रगाहों पर.
प्रभाकरण!
तुम कभी नहीं मर सकते.
तुम हमेशा शान से जिंदा रहोगे
तमिल स्वाभिमान में,
लाखों-करोड़ों उन लोगों के दिलों में
जो आज हिंदुस्तान के दक्षिणी तट पर
विस्थापन का भयानक दौर झेल रहे हैं.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
लड़ाई में आम आदमी ही मरता है ...
जो साथ देता है, वो विरोधियों द्वारा मारा जाता है
जो साथ नहीं देता, उसे साथी ही मार देते हैं.
good
सही कहा !! शैतान कभी मरता नहीं...जब तक कुदरत में भगवान् का अस्तित्व है तब तक शैतान भी मौजूद रहेगा ही ! वक़्त बेवक्त वह सर उठाता ही रहेगा....कभी खुमैनी तो कभी भिंदर वाला बनकर तो कभी बैतुल्ला मसूद की शक्ल अख्तियार करके....प्रभाकरन भी इसी कढि का एक हिस्सा था...जो पिछले तीस सालों से आतंक का पर्याय बन कर दुनिया की अमन पसंद सोच पर अपने काले पंख फैलाए मंडरा रहा था ! उसका भी अंत वही हुआ जो ऐसे लोगों का हुआ करता है ....सच तो यह है की इन्हें अपना पहला क़दम उठाते ही आखिरी क़दम का गुमान हो जाता है लेकिन फिर भी अपनी शैतानी जिजीविषाओं के मद में चूर इन्हें कुछ सूझता नहीं....और अपनी नापाक तमन्नाओ को परवान करने के घिनौने खेल में यह तबाही मचाते चले जाते हैं...!
लेकिन " कहानी रौशनी की कभी ख़त्म नहीं होती, अँधेरा कितना भी गहरा क्यों न हो " !
बाकी रही तमिल स्वाभिमान की बात.....तो वो एक अलग किस्सा है !
Post a Comment