यह मामूली खेल नहीं, जो खुल कर खेला जाने वाला है. पांसे बिछाए जा रहे हैं. व्यूह रचना चरम पर है. कई बड़ों का इसमें हाथ है. साथ है. जिसे हाथोहाथ लिया जा रहा है, उसका माथा संदेह में चकराने लगा है कि आखिर ये हो क्या रहा है, क्यों हो रहा है. बड़े-बड़े चतुर सुजान पता करने में जुट गए हैं कि माजरे के पीछे किसकी अक्ल काम कर रही है. क्या कोई इतनी बड़ी परिघटना सामने आने वाली है, जिसकी पृष्ठभूमि अभी से तैयार की जा रही है. इन्हीं सवालों में छिपा है खेल का मकसद............
1.बिना मांगे समाजवादी पार्टी समर्थन देने पर क्यों उतारू है
2.बिना मांगे बसपा ने भी क्यों कांग्रेस सरकार को समर्थन का ऐलान किया है
3.बेचारे नामवर दलबदलू अजित सिंह भी जीतते ही भाजपा को गच्चा देकर क्यों दुम हिला रहे हैं,
4. पासवान के पास तो समर्थन देने के नाम पर संसद में कोई नामलेवा भी नहीं बचा, वो क्या कर रहे हैं
5.लालू कूद-कूद कर पहले ही दिन से समर्थन देने पर उतारू हैं
6.शरद यादव और नितीश कुमार की भी लार टपक रही होगी
......अब तो कमी इतनी भर दिख रही है कि भाजपा भी भांगड़ा करते हुए सिद्धू के नेतृत्व में पहुंच जाए मनमोहन के दरबार में. जो बोले सो निहाल...सत श्री अकाल....राजनीति का मैं जैकाल....मुझे भी अपनी मंडली में ले लो सद्दार भाई....मुझे भी अमेरिका से बड़ा गहरा नेह है......आडवाणी नहीं तो क्या हुआ.....हम दोनो सरदार अकेले ह्वाइट हाउस खंगाल आएंगे. जरूरत पड़ी तो मोंटेक पा जी को भी साथ लिये चलेंगे. जब सारे पाजी उधर तो एनडीए के अंगने में अकेले मेरे क्या काम है.....दुबारा मुझे इस तरह पूंछ पटक-पटक कर नहीं जीतना....समझे प्राइमिनिस्टर
पा जी!
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