Thursday, May 28, 2009

हे राहुल के लटकन जी!


रोगी थे, धनवंत्री होगै
लोकतंत्र के तंत्री होगै
नेता, सांसद मंत्री होगै
हे राहुल के लटकन जी!
सटकनरायन सटकन जी!!

कांगरेस की रेस महान,
अहा मीडिया-गर्दभ-गान,
झूठ-मूठ में तोड़े तान
सरकारों के लटकन जी!
पुआ-पपीता गटकन जी!!

तरह-तरह के बाइस्कोप
का भारत में बढ़ा प्रकोप,
बिना ठंड पहने कनटोप
मनमोहन के लटकन जी!
झपक-झांडू झटकन जी!!

लुटे-पिटे वोटर कंगाल,
धनवानों के धन्य-दलाल,
अब, सब होंगे मालामाल
रानी-मां के लटकन जी!
चोर-चकेरे चटकन जी!!

2 comments:

admin said...

नेताओं पर खरी खरी कही है आपने। पढकर अच्छा लगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत सुंदर और सामयिक रचना जो बहुत लंबी उमर जिएगी।