11 सितंबर के अटैक के बाद अमेरिका में जुनून, आक्रोश और हताशा इस हद पर पहुंच गई थी कि मस्जिदों, गुरुद्वारों पर हमले किए गये, उदार छवि वाले शहर बोल्डर स्थित कोलोरैडो यूनिवर्सिटी की दीवारों पर लिखा गया...अरबों घर वापस जाओ, अफगानिस्तान पर बमबारी करो, सैंड निग्गर्स वापस जाओ. लेकिन सबका मकसद एक था, शांति कैसे कायम हो. आतंकवाद के प्रेत से मुक्ति कैसे मिले?
नोम चोम्सकी वजहों की ओर लौटते हैं, अमेरिकी दादागिरी और आतंकवाद की जड़ों से पर्दा उठाते हैं. पूछते हैं कि क्या 1979 में रूसियों को अफगानी फंदे में फांसना उचित था? पहले अतिक्रमण को हवा दी गई, फिर अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए इस्लामी जुनूनियों का आतंकवादी संगठन तैयार किया गया. यह सब किया गया अमेरिकी खुफिया एजेंसियों द्वारा. चोम्स्की कहते हैं कि हमें नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका खुद एक अग्रगामी आतंकवादी राज्य है. जिन्होंने आतंकवाद को विश्व में संगठित किया, अमेरिका, रूस, चीन, इंडोनेशिया, मिस्र आदि. इस बहाने आतंकवादी गतिविधियों की अंतरराष्ट्रीय राह बनने-बनाने के माध्यम बने. रूस चेचन्या में अपने खूनी हमलों पर अमेरिका की दोस्ती से खुश होता है. ये तो वही अफगानी हैं न, जो रूस के खिलाफ लड़ रहे हैं. रूस के अंदर भी अपनी आतंकवादी गतिविधियां चला रहे हैं. इसी तरह कश्मीर और इंडोनेशिया के नरसंहारों से सबक लेना चाहिए. चीन अपने पश्चिमी प्रांतों में अलगाववादी ताकतों के खिलाफ संघर्ष कर रहा है, जिनमें वे अफगानी भी शामिल हैं, जिन्हें खुद उसने ईरान के साथ मिलकर 1978 में सोवियत रूस के खिलाफ संगठित किया था. यह पूरी दुनिया में चल रहा है.
एक दिन बुश प्रशासन चेतावनी देता है कि निकारागुआ की वामपंथी सैंदीनीस्ता पार्टी अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी गठबंधन में शामिल नहीं की जाएगी. क्यों? क्योंकि निकारागुआ ने अमेरिका पर इतने तीखे और खुले आक्रमण किए थे कि रोनाल्ड रीगन को मजबूरी में 1 मई 1985 को देश में राष्ट्रीय आपात काल की घोषणा करनी पड़ी थी. तब कहा गया था कि निकारागुआ की नीतियों और गतिविधियों से अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीतियों को खतरा है. फिर उसने निकारागुआ के खिलाफ व्यापार प्रतिरोध का एलान कर दिया था. विश्व न्यायालय ने इसे भी अमेरिका के दूसरे दावों की तरह निराधार मानकर खारिज कर दिया था. रीगन का जवाब था कि अमेरिका विश्व न्यायालय की सुनवाई को नकारता है, क्योंकि निकारागुआ पर आक्रमण को शक्ति के गैरकानूनी इस्तेमाल और संधि का उल्लंघन बताते हुए अमेरिका को लताड़ा गया है. न्यायालय के आदेश के जवाब में निकारागुआ के खिलाफ चलाई जा रही आतंकवादी गतिविधियों को अमेरिका ने और तेज कर दिया था.
अब नार्दर्न एलायंस को लें, जिसे अमेरिका और रूस दोनों समर्थन देते हैं. यह दरअसल जंगपरस्तों का ऐसा गिरोह है, जिसने अपने शासनकाल में अफगानिस्तानियों पर इतने कहर ढाए कि वे तालिबानियों का स्वागत करने को मजबूर हो गए. यह गिरोह ताजिकिस्तान में नशीले पदार्थों की तस्करी में शामिल है. ताजिकिस्तान यूरोप और अमेरिका में नशीले पदार्थों के प्रवाह का मुख्य स्रोत है. अमेरिका रूस के साथ मिलकर अगर सैनिक कार्रवाई में इस गिरोह की मदद करता है तो ऐसे पदार्थों की बाढ़ भी तेज हो जाती है.
(क्रमशः....आगे पढ़े अमेरिका ने किस तरह बमबारी कर सूडान के उस दवा कारखाने को नष्ट कर दिया, जिससे पूरे देश को रियायती दर पर मनुष्यों और पशुओं के लिए दवा सप्लाई की जाती थी )
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1 comment:
aap apane lekh ke madhyam se achchhi jankari pahuchayee bahut bahut dhanybad
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