Thursday, February 12, 2009

र से राम और राजनीति

...सज्जनों एक बार किष्किंधा पर्वत पर बालि ने सुग्रीव से और दूसरे पर्वत पर काग ने भुसुंडी से कहा कि-
राम नाम सुंदर तरकारी।
संशय नहीं, उड़ाओ हाली।।
लोकभाषा में हाली का अर्थ जल्दी होता है.

राम-राम कहि जे जमुहाहीं।
तिन्हहिं न वोटर जी समुहाहीं।
जमुहाहीं का अर्थ जम्हाई, तिन्हहिं का अर्थ उनको, समुहाहीं का अर्थ समर्थन से है.

जा की राजनीति हो सोई।
ता पर कृपा राम की होई।।
लोकभाषा में सोई का अर्थ नींद होता है.

होइ है सोइ जो राम रचि राखा।
पुनः नागपुर में रस चाखा।।
अभी तो बालकांड चल रहा है, सुंदर कांड बाकी है.

सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
कुर्सी बिना अकल गई मारी।।
कुर्सी मिली तो मंदिर बनाएंगे, जैसे (मुर्ख) बनाते आ रहे हैं.

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा।
दिल्ली दूर बहुत है राजा।।
अबकी लार न टपकाओ. मतदाता कचूमर निकाल लेंगे.

उघरहिं अंत न होइ निबाहू।
मांगैं वोट केतु औ राहू।।
एक टकला जी, दूसरे रथयात्रा वाले.

कुफल मनोरथ होहुं तुम्हारे।
राम-लखन सुन भए सुखारे।।
मतगणना के दिन पता चल जाएगा कि कितना उल्लू बनाया.

राम-राम जपना।
पराया माल अपना।।
लोकभाषा में इन सभी शब्दों के अर्थ साफ हैं.

चित्रकूट के घाट पर भइ दुर्जन की भीड़।
दंगाई चंदन घिसैं, तिलक करैं धनवीर।।
राजनीतिक शब्दावली में अर्थ एकदम साफ है.

बंदउं गुरुपद पदुम परागा।
दंगाई कुर्सी ले भागा।।
पदुम माने कमल. लोकसभा चुनाव फिर आ रहा है.

राम सकल नामन्ह से अधिका।
फिर कुर्सी ले भागा बधिका।।
नामन्ह का अर्थ नाम, अधिका यानी अधिक, बधिका यानी बधिक.

तो सज्जनों....इतनी रामायण सुनते ही किष्किंधा पर्वत पर बालि-सुग्रीव और दूसरे पर्वत पर काग-भुसुंडी मूर्च्छित हो गए. जय श्रीराम...जय श्रीराम

1 comment:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्! अति सुन्दर .......
आपके चिट्ठारविन्द के जरिए परम पावन पापनाशिनि श्री राम कथा का पाठन करने का पुण्य फल प्राप्त हुआ.
इस हेतु आभार स्वीकार करें.....
जै श्री राम.......