Saturday, February 6, 2010

संसद के भीतर राजनीति के अलग रंग है, संसद के बाहर अलग रंग।

राजनीति जितनी तेजी से रंग बदल रही है, उसमें से आदमी का रंग उसी गति से गायब होता जा रहा है। कहीं शिवसेना के रंग से पूरा देश हांफने लगता है तो कहीं लालू-पासवान के सुर से नितीश और कांग्रेस की सांसें फूल जाती है। जयाप्रदा और जया बच्चन की जुबान चलते ही समाजवादी पार्टी ठिठुरने लगती है तो अमर सिंह की बात पर रामगोपाल चौंक पड़ते हैं। संसद के भीतर राजनीति के अलग रंग है, संसद के बाहर अलग रंग। इन्हीं रंगों के भेद खोल रहा है .... sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम

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