स्वामी मार्क्सानंद ने कहा था कि जिस तरह कांग्रेस वाले गांधी, नेहरू, पटेल को, भाजपा वाले राम-कृष्ण आदि 33 करोड़ देवी-देवताओं को, सपा वाले लोहिया को, बसपा वाले अंबेडकर को बेंच-खा रहे हैं, उसी तरह तुम लोग केरल से कलकत्ता तक हमें बेंच खाना. हे सेंचुरी जी, करैत जी, दुर्बुद्ध देव जी हमें बेंचते-खाते समय लेनिनवाद को खूब लतियाना, स्टालिनवाद को खूब गरियाना, माओवाद को बेशर्मों की तरह घोल कर पी जाने के बाद खूब उल्टियां करना..क्योंकि तुम्हारे भी अंत निकट हैं!
गुरु गोर्की ने कहा था कि हे निठल्ले नामवर, राजेंद्र, उदय प्रकाश, मैनेजर पांडेय, आंडे-बांडे-सांडे आदि-आदि इतना प्रगतिशील हो जाना कि हिंदी साहित्य की प्रगति ही पानी मांगने लगे. ऐसी आलोचनाएं करना कि जयचंद भी शरमा जाए, ऐसी कहानियां लिखना कि अफवाहें भी लाज से गड़ जाएं. दिल्ली में छककर पुआ-पुड़ी उड़ाते हुए गरीबी का तब तक सस्वर पाठ करते रहना, जब तक कि हिंदुस्तान के एक-एक किसान-मजदूर की हुकूमत चमड़ी न उधेड़ डाले.
भगवान पराड़कर ने कहा था कि हे मेरे देश के अखबारनबीसों पूंजीपतियों के अखबारों में रात-दिन खटते हुए बाल-बच्चे पालते रहना, जाम पर जाम ढालते रहना, सूचनाएं बेचते रहना, फालतू के पेंच पेंचते रहना. बिल्डरों के चैनल चलाते रहना, बीच-बीच में हिरोइने नचाते रहना, विदेशी निवेश के लिए मालिकों की दलाली करते रहना, नेताओं के चिलम भरते रहना. यह सब तब तक करते रहना, जब तक कि चौथा खंबा धमधमा कर बैठ न जाए.
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