Monday, August 24, 2009

चमड़िया-चौबे और भूमिहार-वामपंथ, ठाकुर-वामपंथ, यादव-वामपंथ





ठाकुर-वामपंथ और भूमिहार-वामपंथ की ताजा
जुगलबंदी। विभूति नारायण राय, नामवर सिंह आदि। उनके झांसे में आ कर गच्चा खा गए बेचारे अनिल चमड़िया, कृपाशंकर चौबे।
प्रकाश उर्फ करैत जी, आचार्य उर्फ भट्ट जी, सीता उर्फ राम उर्फ येचुरी जी ने वामपंथ का जैसा हाल राजनीति में कर रखा है, थकेला प्रगतिशील बूढ़ों ने वहीं हाल साहित्य में कर दिया है। एक हैं वीएन राय। पूरा नाम विभूति नारायण राय। और एक है वर्धा यूनिवर्सिटी। बेचारे बापू के नाम पर चल रही है. उस के वाइस चांचलर हैं राय साहब और उसी के बड़का महाचांसलर हैं नामवर सिंह. राय साहब को जैसे ही कुर्सी मिली, तरह-तरह की कुर्सियों पर भूमिहार बिरादरी को ठूंस डाला है। दो चार रेवड़ियां इधर-उधर भी फेंक दी ताकि चादर एकदम से काली-काली नजर न आए। जैसे, रविंद्र कालिया दोस्त हैं तो उनकी पत्नी कथाकार ममता कालिया को नौकरी दे दी. बहुत दिनो से अनिल चमड़िया की आत्मा दिल्ली में डांवाडोल चल रही थी, उन्हें भी वर्धा बुला कर एक कुर्सी पर बिठा लिया। कृपाशंकर चौबे अच्छी खासी हिंदुस्तान हिंदी दैनिक की कोलकाता में नौकरी कर रहे थे, छोड़कर वह भी पहुंच गए भूमिहार टोले-मोहल्ले में.
बाद में पता चला कि चौबे जी बीमार हो गए। इन दिनों भी काफी अस्वस्थ हैं. कहां पचास-साठ हजार रुपये मिल रहे थे, अब सिर्फ बत्तीस हजार की सेलरी। चमड़िया जी भी फंस गए हैं। क्यों? द
रअसल बात ये पता चली है कि वामपंथी भूमिहार वीसी साहब ने दोनों के सिरहाने एक भूमिहार भाई को हेड बनाकर चेंप दिया है। चमड़िया-चौबे इस आश्वासन पर वर्धा पहुंचे थे कि कम से कम अस्सी हजार रुपये हर महीने सेलरी मिलेगी। अब अस्सी हजार वाला पैकेज दे दिया गया है भूमिहार भाई सीनियर को। चमड़िया-चौबे को कहा गया है कि तीस-बत्तीस आपको भी मिल जाएंगे। चौबे जी तभी से बुरी तरह अस्वस्थ चल रहे हैं।
वामपंथी भूमिहार साहब ने बेरोजगार भूमिहार भाइयों को तीन स्तरों पर खपाया है। कुछ को वर्धा यूनिवर्सिटी में, कुछ को दिल्ली में आफिस खोलकर बैठा दिया। कुछ को इलाहाबाद में दफ्तर खोलकर घुसा लिया है. इसे कहते हैं जातिवादी वामपंथ। उसी जातिवादी वामपंथ अर्थात सठियाये वामपंथ की राह चल रहे हैं जनाब नामवर सिंह, जिन्होंने अपने भाई काशीनाथ सिंह को सबसे बड़का कहानीकार घोषित कर रखा है. नामवर भाई को ठाकुर बिरादरी से बड़ा प्यार है। तो ये ठाकुर-वामपंथ और भूमिहार-वामपंथ की ताजा जुगलबंदी। राजेंद्र यादव जाति को वर्ग बहुत पहले ही घोषित कर चुके हैं। जय हो जातिवादी वामपंथ की!! धिक्कार है जातिवादी वामपंथ को। तो बेरोजगार ठाकुर, भूमिहार, यादव भाइयों से विनम्र निवेदन है कि रोजगार-पानी पाने के लिए तत्काल इन जातिवादी वामपंथियों का पुछल्ला बन जाएं, भगवान उनका भी भला करेगा।





1 comment:

antaryatri said...

sanghi bhumihaar bhi patrkarita me kam narak nahi machaye hai .