पुन्य कौ पावस ऐसो भयो
बरसाने के अंबर भावन ह्वै गै.
घेरि गै मेघ अबीर-गुलाल के
झांझ-मजीरे सुहावन ह्वै गै.
दामिनि की छबि अंग लिये
वृषभानुजा के तन पावन ह्वै गै.
फागुन की रसवंती फुहार मैं
नंद कौ सांवरे सावन ह्वै गै.
कंगन खानि कै आनि उछंग मैं
बानी पिरीति की बोवन लागे.
पोवन लागे उमंग, विमोहिनी
मंग मैं रोरी पिरोवन लागे.
औगुन तै छबि बांधि के आपुन
फागुन मैं गुन गोवन लागे.
हारी-थकी सुकुमारिन के रस
मोहन मोहि निचोवन लागे.
4 comments:
बहुत सुन्दर ब्रज गीत है
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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
are waah, maza aagaya...me to barsana ho aayaa janab aapki rachna ke madhyam se..
अति सुन्दर!!
padhkar anaayas SOM JI {SOM THAKUR} YAAD AAGAYE
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