Sunday, March 1, 2009

नंद कौ सांवरे सावन ह्वै गै




पुन्य कौ पावस ऐसो भयो
बरसाने के अंबर भावन ह्वै गै.
घेरि गै मेघ अबीर-गुलाल के
झांझ-मजीरे सुहावन ह्वै गै.
दामिनि की छबि अंग लिये
वृषभानुजा के तन पावन ह्वै गै.
फागुन की रसवंती फुहार मैं
नंद कौ सांवरे सावन ह्वै गै.

कंगन खानि कै आनि उछंग मैं
बानी पिरीति की बोवन लागे.
पोवन लागे उमंग, विमोहिनी
मंग मैं रोरी पिरोवन लागे.
औगुन तै छबि बांधि के आपुन
फागुन मैं गुन गोवन लागे.
हारी-थकी सुकुमारिन के रस
मोहन मोहि निचोवन लागे.

4 comments:

Vinay said...

बहुत सुन्दर ब्रज गीत है

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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें

अमिताभ श्रीवास्तव said...

are waah, maza aagaya...me to barsana ho aayaa janab aapki rachna ke madhyam se..

Udan Tashtari said...

अति सुन्दर!!

पारुल "पुखराज" said...

padhkar anaayas SOM JI {SOM THAKUR} YAAD AAGAYE