Saturday, December 13, 2008

विचार मर जाने के बाद

चिट्ठियां लिखे
आधी उम्र जा चुकी,
अब कोई कविता लिखने का
मन नहीं करता,
दोस्ती के मुहावरे जाने कब के
झूठे पड़ चुके,
बातें बचपन के गांव की करूं
-तो......
किताबों की करूं
-तो........
मां की लोरियों और पिता की स्नेहिल झिड़कियों की करूं
-तो.......
उस समय से इस समय तक
जब कुछ भी
साबुत नहीं रहा
-तो....
करूं क्या
सोचने से पहले अथवा
विचार मर जाने के बाद
उसके साथ भी वही हुआ, जैसाकि अक्सर होता है
बहुतों के साथ.

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर एहसास के साथ एक बेहतरीन रचना है।बहुत अच्छी लगी।आभार।