नेता हूं
नेता हूं
कविता बनाता हूं
और गुनगुनाता हूं
बेमौसम छाता हूं
बड़े-बड़े लोगों को फंसाता हूं जाल में.
रात दिन पीता हूं
सपनों में जीता हूं
अधपका पपीता हूं
देश बेंच खाता, बाज आता हूं न चाल में
बाहर हूं, अंदर हूं
पलिहर का बंदर हूं
कवि भी धुरंधर हूं
रात-दिन बजता, बजाता हूं गाल में.
चिल्लर हूं मलमल का
खटिया का खटमल हूं
जोंक हूं गंगाजल का
पीता हूं खून, ढील-जुंआ हूं बाल में.
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1 comment:
सुन्दर
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