Friday, December 12, 2008

दोगला सनातन हूं

नेता हूं
नेता हूं

कविता बनाता हूं
और गुनगुनाता हूं

बेमौसम छाता हूं
बड़े-बड़े लोगों को फंसाता हूं जाल में.


रात दिन पीता हूं
सपनों में जीता हूं
अधपका पपीता हूं
देश बेंच खाता, बाज आता हूं न चाल में

बाहर हूं, अंदर हूं
पलिहर का बंदर हूं
कवि भी धुरंधर हूं
रात-दिन बजता, बजाता हूं गाल में.

चिल्लर हूं मलमल का
खटिया का खटमल हूं
जोंक हूं गंगाजल का
पीता हूं खून, ढील-जुंआ हूं बाल में.

1 comment:

Anonymous said...

सुन्दर