अभी समुद्री डकैतों ने पूरा जहाज ही अगवा कर लिया. उसे डुबो दिया गया. समुद्र के रास्ते मुंबई पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया. एक हीरो पूरी रात पूरे शहर में घूम-घूम कर अकेले इतने आतंकवादियों से मोरचा लेता रहा और एक-एक कर सभी को मार गिराया. इससे पहले वह पाक और बांग्लादेश की सीमाओं पर हैरतअंगेज लड़ाइयां फतह कर चुका है. वह हीरो हो सकता है ऋतिक रोशन, अमिताभ बच्चन, सुनील सेट्ठी, शहारुख खान, अनिल कपूर, संजय दत्त या कोई और. देहफरोश हिरोइनों के साथ नाच-नाच कर हराम के करोड़ों-अरबों रुपये कमाने के बाद दौलत वालों की दुनिया में गाल बजाने वाले अय्याशों ने सबसे ज्यादा इस देश की नई पीढ़ी को बर्बाद किया है. जब मुंबई पर हमला हुआ, परदे पर तिलस्मी शेखी बघारने वाले इन नकली बहादुरों में से काश कोई एक भी निकल कर सामने आ गया होता और कम से कम अपने एक हीरो की शहादत पर भारतीय नौजवान फक्र कर लेते कि हमारे हीरो सिर्फ पैसा नहीं कमाते, सिर्फ परदा-बहादुर भर नहीं, सिर्फ नाचने और नंगी हिरोइनो को बॉडी दिखाने के लिए मसल्स नहीं चमकाते, वे सिर्फ चूमाचाटी कर रुपये नहीं उगाते बल्कि हकीकत की जिंदगी में भी वे उतने ही बहादुर हैं.
वे कायर क्या बहादुरी दिखाएंगे जो पैसे के लिए दाऊद की पार्टियों की शोभा बढ़ाने दुबई पहुंच जाते हैं. उनका जितना दिमाग खराब है, उससे ज्यादा पैसे की हवस में डूबे अखबार और चैनल वाले उनके दिमाग खराब किए हुए हैं. देश की प्रतिभा और बहादुरी की उपेक्षा कर सबसे ज्यादा इन हिजड़ों और हिजड़नियों (कैटरीना, ऐश्वर्या, रानी कानी) को स्पेस दिया जाता है. इन्होंने पूरी पीढ़ी को निर्वीर्य बना दिया है.
मुंबई में जब तड़ातड़ गोलियां चल रही थीं, पैसे वाले ताज होटल में अय्याशी में डूबे हुए थे, दारू के कई-कई पैग सूत कर अकबका रहे थे. जब गोलियां बरसने लगीं, सारा नशा अंदर घुस गया और चड्ढी-चोली में मागो-मागो चिल्लाने लगे. हराम के. इन पैसे वालों और उनके नचनियों ने पूरे मुल्क को हरम में तब्दील कर रखा है. मुश्किल तो ये है कि इन हरमवालों की हिफाजत के लिए हमारे 14 नौजवानों को बलिदान होना पड़ा.
आज जरूरत है कि देश के बुद्धिजीवी एक हों, कुशासन पीड़ित एक हों, ईमानदार लोग एक हों और हरामखोरों के खिलाफ सड़कों पर उतरें. लगातार ऐसे अभियान चलें. जब पूरी जनता लामबंद हो जाए, फिर किसी की हिम्मत नहीं, जो अपने प्यारे भारत पर कोई कुत्ता बुरी नजर डालने की हिम्मत कर सके. यह शोक में बिसूरने का समय नहीं, सांप्रदायिक आनंद लेने का समय नहीं, हाय-हाय, उफ्-उफ् करने का समय नहीं, अपने बीच के हरामियों के खिलाफ उड़ खड़े होने का समय है. मुंबई हमले का यही बुनियादी सबक हो सकता है. हम अपने बीच के हरामखोरों से निपट लें तो बाहर के हरामी वैसे ही डर जाएंगे. जब तक हम वीरता का नकली प्रदर्शन करते रहेंगे, काफी हाउसों में बैठकर बौद्धिक जुगालियां करते रहेंगे, संसद में नोट की गडि्डयां बटोरते रहेंगे, तब तक इस देश का भगवान ही मालिक होगा.
देखना....जब सब कुछ सामान्य हो चुका होगा, सारे आतंकवादी मारे या पकड़े जा चुके होंगे, तब साबुन-सेंट से नहा-धोकर ब्रांडेड कपड़े पहने हीरो और गोरे-गोरे मुखड़े पर काले-काले चश्मे पहने हिरोइनें मुंबई की सड़कों पर शांति मार्च करने निकलेंगी. चैनल और अखबार फोटो ग्राफरों के दनादन फ्लैश चमकेंगे. गेंदा-गुलाब की मालाओं से लदे-फदे मंत्री और अफसर शोक यात्रा में ठठाकर हंसते-गपियाते हुए भारतीय लोकतंत्र और फिल्म इंडस्ट्री की अथाह कमाई-धमाई की हिफाजत की अलख जगाएंगे. देखना ऐसा ही होगा. और हम फिल्मी पर्दे पर स्टंट-तालियां बजाते हुए रात-रात भर टीवी पर भक्कूलाल की तरह आंखें फाड़-फाड़ कर देखते रहेंगे कि..........अरे-अरे-रे....मार दिया...मार दिया....मार दिया रे......
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3 comments:
उन्होंने भारत को जंग में हरा ही दिया
अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर भले ही कुछ लोग इस बात पर मुझसे इत्तेफाक न रखे मुझसे बहस भी करें लेकिन ये सच है उन्होंने हमें हरा दिया, ले लिया बदला अपनी...
आपने जो भी कहा उससे मैं १०० प्रतिशत सहमत हूँ ,कल सिर्फ महेश भट्ट और जावेद जाफरी के अलावा किसी ने आने की जहमत नही उठाई ,आपका शब्द-शब्द सही है कल भी ये लोग अपने बंगलों मैं अय्याशी /खाने पिने मैं मशगुल होंगे आधे से जयादा हमारी सामाजिक व्यवस्था को चोपट करने वालें ये ,भोंडे पर्दर्शन करता मनोरंजन के नाम पर मनमानी का खेल करते इनलोगों पर कानूनन शिकंजा कसने की जरूरत है
very true.ekdam satya hai . naa ye nachaniye kuch ker sake naa hi rashtrahit me kuch bol sake. in jaichandon ne hi is desh ko baarbaar becha hai.jeetna hai to inse nipatna seekhna hee hoga.
dr.bhoopendra
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