Sunday, September 21, 2008




फटी-फटी चिल्लाते क्यों हैं परसौली के बाबा जी।
गीत-गौनई गाते क्यों हैं परसौली के बाबा जी।

मूछें खड़ी-खड़ी हैं
आंखे चढ़ी-चढ़ी,
बातें बड़ी-बड़ी हैं
नखरे घड़ी-घड़ी.
फिर भी दया लुटाते क्यों हैं परसौली के बाबा जी।
हरदम गाल बजाते क्यों हैं परसौली के बाबा जी।

धूत-भूत-अवधूत
सरीखे नाती-पूत,
ऋद्धि-सिद्धि की भी है
जो महिमा कूत-अकूत
राट-पाट के नाते क्यों हैं परसौली के बाबा जी।
हरदम हिट हो जाते क्यों हैं परसौली के बाबा जी।

2 comments:

Udan Tashtari said...

ये कौन हैं भई-परसौली के बाबा जी..??

मुंहफट said...

हर गली, हर मोहल्ले में हैं परसौली के बाबा जी