Wednesday, September 24, 2008

दिनकर की बात पर इतनी क्यों?

कविता वाक्चनवी का सवाल
ऐसी बातें निस्सन्देह गप्प की श्रेणी में आती हैं।
या आप अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए सन्दर्भ,पुस्तकनाम,लेखक, अता-पता,प्रकाशक या जो भी आपकाआधर रहा है उसका पूरा ब्यौरा दें,प्रतिलिपि उपलब्ध कराएँ। अन्यथा ऐसे बेसिर पैर के फूहड़ हवाई बेतुकेपन केलिए सार्वजनिक क्षमा माँगें।
ऐसा होने की स्थिति में मैं आपका तीव्र विरोध ही नहीं निन्दा करती हूँ।

रंजन का सवाल...
क्या ये सही बात है? अगर हां तो शर्मनाक है..


उड़न तश्तरी उवाच...
चाहे दिनकर जी हों या कोई और कवि-कलाकार का ऐसा असम्मान उसकी प्रस्तुति के दौरान-हमेशा शर्मनाक हीकहलायेगा!!


और लोकेश said...
हो भी सकता है।


कविता जी
पहले तो यह जान लीजिए कि दिनकर जी जितने बड़े कवि, उतने ही सत्तालोलुपभी थे। राष्ट्रकवि का खिताब उन्हें उसी चापलूसी में मिला था। वरना उस जमाने में उनसे बहुत अच्छा-पढ़ने वाले और भी तमाम कवि-रचनाकार थे। उस जमाने के किसी भी जीवित रचनाकार से यह हकीकत जान सकती हैं(यद्यपि संभव नहीं कि कोई जीवित हो)
मैं अपनी बात शुरू करने से पहले कविता जी की जिज्ञासा शांत कर दूं कि न मैं उस कवि सम्मेलन का प्रत्यक्षदर्शी था, न श्रोता। मुझे यह बात दिनकर जी के साहित्यिक प्रतिद्वंद्वी और हल्दीघाटी के रचनाकार पं.श्यामनारायण पांडेय ने बतायी थी। खेद है कि अब वह इस दुनिया में नहीं रहे। वही मेरे एकमात्र प्रमाण थे। दूसरी बात यह कि यदि किसी के भीतर जरा-सी भी रचनात्मक कौशल है तो तथ्यों को पढ़ते-सुनते ही जान लेता है कि बात गप्पबाजी की है या वास्तविक। मेरी स्मृति में और भी कई नामवर लोगों की व्यथा-कथा है। उनमें से कुछ आपको बता ही देता हूं। इससे पहले मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि राहुल सांकृत्यायन जहां-जहां गये, उन्हें एक बीवी की जरूरत महसूस हुई, क्या ये बात गलत है? पंडित नेहरू अंग्रेजी मेम पर फिदा थे, क्या ये बात गलत है? पटेल कट्टर हिंदूवादी थे, क्या ये बात गलत है? लोहिया ने इस देश में वामपंथ को विकृत किया था, क्या ये बात गलत है? महाप्राण कहे जाने वाले निराला कोठों तक की खाक छानते रहते थे, भांग-धतूरा-शराब-गांजा का जमकर सेवन करते थे, ये सच्चाई कौन नहीं जानता? कामायनी के रसिया रचनाकार जयशंकर प्रसाद हर शाम शिल्क का कुर्ता-धोती पहनकर लकदक वेश-भूषा में बनारस की दालमंडी (कोठेवालियों का अड्डा) क्यों जाते थे? महान आलोचक नामवर सिंह भयानक ठाकुरवादी हैं, क्या ये बात गलत है? महान कथाकार और हंस के संपादक राजेंद्र यादव स्त्री-विमर्श के लेखन और स्त्री के प्रति (मन्नू भंडारी) निजी जीवन में कितना अंतर रखते हैं, क्या ये बात आपको मालूम है? और तो और क्रांतिकारी कवि नागार्जुन जब कमला सांकृत्यायन के यहां मसूरी की घाटी में बार-बार पहुंचने से बाज नहीं आ रहे थे तो कमला जी को उन्हें कड़ी फटकार लगानी पड़ी थी। क्यों?
कविता जी यह सब भी मैंने देखा नहीं है, किसी न किसी प्रसिद्ध रचनाकार के मुंह से सुना ही है, और इनमें तमाम बातें तमाम लोगों को मालूम हैं। तो इन कथित महान लोगों के दोहरेपन की कोई कड़ी खुलने पर इतना बेचैन न हों। आज के उन मंचीय भाड़ों (कवियों) के तो एक-से-एक किस्से हैं, जिन्हें लोग टकटकी बांधकर सुनते रहते हैं। ऐसे भांड़ की राजू श्रीवास्तव भी पानी-पानी हो जाए।

कविता जी
आपको कुछ बातें और बता दूं कि नामवर सिंह के गुरु हजारी प्रसाद द्विवेदी, दूसरे कथित राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी राजनीतिक गलियारों में बड़ी शीतलता महसूस करते थे। इसके लिए उनका साहित्यिक सरोकार ताक पर होता था। पुरस्कारों के लिए उन दिनों बड़ी भयानक मुठभेड़ें हुआ करती थीं। तब बड़े रचनाकारों को देव पुरस्कार मिला करता था। उसे पाने के लिए पांच बड़े-बुजुर्ग कवियों-लेखकों की जांच कमेटी से गुजरना पड़ता था। उन्हीं दिनों एक दिन निराला जी ने अपने बुजुर्ग अनुरागी पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी से कहा था कि भैया जी, हम लिखते-लिखते मरे जा रहे हैं, हमें कोई पूछ नहीं रहा और फलां की किताबे विश्वविद्यालय प्रकाशन पर लाइन लगकर बिक रही हैं! इस तरह के अंतरदाह से बड़े-बड़े पीड़ित रहा करते थे।

...तो एक और ताजा-सा छोटा-सा संस्मरण झेल लीजिए-
बात सन् 1982 में गाजीपुर के उपनगर नंदगांव की है। कवि सम्मेलन शुरू हो चुका था लेकिन आयोजक का कहीं अता-पता नहीं था। आयोजक था कौन? नंदगांव थाने का इंसपेक्टर। नमूदार हुआ रात दो बजे, जब कविसम्मेलन समाप्त होने को था। कहां गुम थे जनाब? तो पता चला कि बगल के बलिया जिले में किसी फर्जी मुठभेड़ में गए थे और चार लोगों को ठिकाने लगाने के बाद अभी-अभी लौटे हैं। इसके बाद इंसपेक्टर ने एक-के-बाद-एक कई कविताएं झूम-झूमकर पढ़ डालीं। लोगों ने कहा...वाह-वाह...आह्!!

1 comment:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

किसी भी इन्सान की ज़िँदगी मेँ ऐसी बातेँ हो सकतीँ हैँ
क्या रचनाकार या कलाकार !
उनका काव्य या रचनात्मक प्रयास ही समाज के लिये होता है
ना कि उनकी निजी जीवनी..
this is my opinion or
I just READ & admire their TEXT. That is all.
अगर कोई १०० प्रतिशत सुवर्ण होगा उसे भी समाज पहचान ही लेगा ये
बात भी पक्की है !
- लावण्या