1
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बड़ता है शरबें जो शराबों में मिलें
आज हम दार पे खेंचे गये जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
2
अब के रुत बदली तो ख़ुशबू का सफ़र देखेगा कौन
ज़ख़्म फूलों की तरह महकेंगे पर देखेगा कौन
देखना सब रक़्स-ए-बिस्मल में मगन हो जायेंगे
जिस तरफ़ से तीर आयेगा उधर देखेगा कौन
वो हवस हो या वफ़ा हो बात महरूमी की है
लोग तो फल-फूल देखेंगे शजर देखेगा कौन
हम चिराग़-ए-शब ही जब ठहरे तो फिर क्या सोचना
रात थी किस का मुक़द्दर और सहर देखेगा कौन
शहर जलता हो तो तुझ को बाम पर देखेगा कौन
3
बदन में आग सी चेहरा गुलाब जैसा है
के ज़हर-ए-ग़म का नशा भी शराब जैसा है
कहाँ वो क़ुर्ब के अब तो ये हाल है जैसे
तेरे फ़िराक़ का आलम भी ख़्वाब जैसा है
मगर कभी कोई देखे कोई पढ़े तो सही
दिल आईना है तो चेहरा किताब जैसा है
वो सामने है मगर तिश्नगी नहीं जाती
ये क्या सितम है के दरिया सराब जैसा है
हमें अज़ीज़ है ख़ानाख़राब जैसा है
4
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत* का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
पहले से मरासिम* न सही, फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है, तो ज़माने के लिए आ
एक उमर से हूँ लज्ज़त-ए-गिरया* से भी महरूम
ए राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिए आ
अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
यह आखिरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ
5
हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू
कहाँ गया है मेरे शहर के मुसाफ़िर तू
बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू
मेरी मिसाल कि इक नख़्ल-ए-ख़ुश्क-ए-सहरा हूँ
तेरा ख़याल कि शाख़-ए-चमन का ताइर तू
मैं जानता हूँ के दुनिया तुझे बदल देगी
मैं मानता हूँ के ऐसा नहीं बज़ाहिर तू
हँसी ख़ुशी से बिछड़ जा अगर बिछड़ना है
ये हर मक़ाम पे क्या सोचता है आख़िर तू
ज़माना साहिब-ए-ज़र और सिर्फ़ शायर तू
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