Thursday, June 5, 2008

मारो थप्पड़ तान के....

दुश्मन हिंदुस्तान के।
मारो थप्पड़ तान के।

मिलें जो रात-बिरात में,
दिल्ली या गुजरात में,
पाकिस्तानी पांत में,
दाउद की बारात में,
मारो थप्पड़ के तान के.....

घूम रहे हैं देश में,
जोगीजी के भेष में,
कोई मुश का साथी है,
कोई बुश का नाती है,
मारो थप्पड़ तान के......

मीट-चिकन की बोरियां,
नंग-धड़ंग अघोरियां,
शैतानों की छोरियां,
गा रही हैं लोरियां,
मारो थप्पड़ तान के......

महंगाई की नोक पर,
ताल-तबेला ठोंक कर,
पैसा मारे भोंक कर,
चिदंबरम के जोक पर
मारो थप्पड़ तान के......

ओपेक की अठखेलियां,
झम्म झमाझम थैलियां,
साधू बने बहेलिया,
गाने लगे पहेलियां,
मारो थप्पड़ तान के....


5 comments:

Anonymous said...

bahut hi sahi jabardast rachana badhai

हरिमोहन सिंह said...

हम तो ताली बजायें आपकी तान पे

बालकिशन said...

वाह जी वाह.
सब के मन की पीडा को शब्द और स्वर दिया आपने.
बहुत-बहुत बधाई.

रंजू भाटिया said...

महंगाई की नोक पर,
ताल-तबेला ठोंक कर,
पैसा मारे भोंक कर,
चिदंबरम के जोक पर
मारो थप्पड़ तान के...

वाह पहली बार पढ़ा आपका लिखा अच्छा लिखा है सही बात है महंगाई ने तो तोबा करवा दी है

राजीव रंजन प्रसाद said...

"मारो थप्पड तान के" को बेहद तीक्षणता एवं गंभीर कथ्यों से स्थापित किया है आपने। बेहतरीन रचना..

***राजीव रंजन प्रसाद