Thursday, May 29, 2008

हे प्रभो मैथिली, रतलामी!

ये क्या हो रहा है?
पुस्तकालय से निकल कर चिट्ठागीरी बाथरूमों में घुसी जा रही है।
रोको-रोको। सब लाइन लगाकर खड़े हैं। अपनी-अपनी बारी के इंतजार में।
ये नैतिकता और नंगई की पावभांजी किसी से निगली नहीं जा रही है।

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