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बड़े-बड़ों में बड़े-बड़े,
तंबू ताने पड़े-पड़े,
झूल रहे हैं बल्ली पर,
जम्हूरियत को तड़े-तड़े।
चढ़ा-चढ़ी है,
जो हड़बड़ी है,
तड़ातड़ी है,
सारे सूअर ताड़ रहे हैं
खड़े-खड़े।
कविता-सविता धत्तेरे की,
तू ना मेरा, मैं तेरे की,
खूब अकड़ कर
पूंछ पकड़ कर
कर डालूंगा चढ़े-चढ़े।
तंत्र-मंत्र है,
लोकतंत्र है,
चाहे जिसकी, जो कर डाले,
वे स्वतंत्र हैं,
पके-अधपके सड़े-सड़े....झूल रहे हैं बल्ली पर सब जम्हूरियत को तड़े-तड़े।
कविता की,
या छंद-फंद की...
गांधी की,
या प्रेमचंद की...
ले लो अपनी लकुट-कमरिया
शर्म-हया से गड़े-गड़े.......झूल रहे हैं बल्ली पर सब जम्हूरियत को तड़े-तड़े।
धूमिल पर मत क्रोध करो,
मुक्तिबोध का
शोध करो,
लेनिन-मार्क्स जहां भी हों,
ढूंढो उनको, शोध करो
वरना अपनी चूल हिलाते
रह जाओगे खड़े-खड़े।
.......झूल रहे हैं बल्ली पर सब जम्हूरियत को तड़े-तड़े।
पके-अधपके सड़े-सड़े....
शर्म-हया से गड़े-गड़े....
चुप्पी-चुप्पा,
फूल के कुप्पा।
चुप्पी बोली-
मैं ना बोलूं,
चुप्पा तेरा भेद न खेलूं,
तू घुरघुप्पा.....चुप्पी-चुप्पा।
चुप्पा बोला-
मैं ना बोलूं,
चुप्पी तेरा भेद न खोलूं,
तू घरफुक्का.....चुप्पी-चुप्पी।
रोज-रोज की
चुप्पी-चुप्पा
देख-देखकर
ऊब गये तो
बोले उनके फुफ्फी-फुफ्फा-
क्या तुम सब हो साहब-सुब्बा...चुप्पी-चुप्पा।
चुप्पा के
दुनिया में नाते,
देश-देश में उसके खाते,
चुप्पी की
मुट्ठी में कॉलर,
चुप्पी की मुट्ठी में डालर,
जनता की
थैली में दोनों खेल रहे हैं रुप्पी-रुप्पा.....चुप्पी-चुप्पा।
मछली रानी, मछली रानी
महक रहे हैं हिंदुस्तानी,
बोलो-
किसने किया है
इस तालाब को गंदा?
हरी है, मन भरी है
नौ लाख मोती जड़ी है,
बोलो-
किसके बाग में
दुसाला ओढ़े खड़ी है?
आन (दूसरे) का मैदा,
आन का घी,
बोलो-
शंख क्यों बजायें
बाबा जी?
चढ़ा चाप पर चापा,
फिर बित्ता भर नापा,
बोलो-
आम आदमी
किसके पाप से कांपा?
थरथर-थरथर डोल रही है,
हवा निगाहें खोल रही है,
बोलो-
किस मौसम की भाषा
समय की कोयल बोल रही है?
...घिरे हैं हम सवाल से
हमे जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल हैं कि.....
तेल देखिए
और तेल की धार देखिए।
हरदम प्राइस-वार देखिए,
ओपेक की हुंकार देखिए,
तरह-तरह की कार देखिए,
अद्भुत नाटककार देखिए,
दिल्ली की सरकार देखिए,
महंगाई की मार देखिए.....तेल देखिए, और तेल की धार देखिए।
चोट्टों का व्यापार देखिए,
बुश-मुश जैसे यार देखिए,
मालदार अय्यार देखिए,
डालर की झंकार देखिए,
रुपया दांत-चियार देखिए,
चोरों की भरमार देखिए.....तेल देखिए, और तेल की धार देखिए।
गाड़ी धक्कामार देखिए,
मचता हाहाकार देखिए,
दौलत के अंबार देखिए,
जालिम जोड़ीदार देखिए,
भीतर-भीतर प्यार देखिए,
बाहर से तकरार देखिए.....तेल देखिए, और तेल की धार देखिए।
पंडों के त्योहार देखिए,
पब्लिक अपरंपार देखिए,
मुफलिस की दरकार देखिए,
लोकतंत्र लाचार देखिए,
कानूनी हथियार देखिए,
संविधान बेकार देखिए.....तेल देखिए, और तेल की धार देखिए।
गद्दी पर गद्दार देखिए,
वोटर पर उपकार देखिए,
सबके सिर तलवार देखिए,
बिना नाव पतवार देखिए,
फांके से बीमार देखिए,
फांसी पर दो-चार देखिए, .....तेल देखिए, और तेल की धार देखिए।
संकट के आसार देखिए,
लोग फंसे मझधार देखिए,
उजड़े घर-परिवार देखिए,
घीसू-माधव भार देखिए,
धनिया की चिग्घार देखिए,
गोबर की अंकवार देखिए.....तेल देखिए, और तेल की धार देखिए।
सिंहासन पर स्यार देखिए,
भरा-पुरा संसार देखिए,
खूब मचाये रार देखिए,
फिर जूतम-पैजार देखिए,
लुच्चों की ललकार देखिए,
गुंडों के सरदार देखिए,
खादी में अवतार देखिए .....तेल देखिए, और तेल की धार देखिए।
विश्वबैंक बटमार देखिए,
सूदखोर दुमदार देखिए,
जुड़े तार-बे-तार देखिए,
दोनो हाथ उधार देखिए,
अमरीकी दुत्कार देखिए,
चिदंबरम की लार देखिए,
भारत का भंडार देखिए,
कर्जे से गुलजार देखिए,
होते बंटाढार देखिए.....तेल देखिए, और तेल की धार देखिए।
अय्याशी उस पार देखिए,
फिल्मी पॉकेटमार देखिए,
पर्दे पर पुचकार देखिए,
गंदे गीत-मल्हार देखिए,
एक नहीं सौ बार देखिए,
सांस्कृतिक उद्धार देखिए,
खुले नर्क के द्वार देखिए,
सेक्सी कारोबार देखिए.....तेल देखिए, और तेल की धार देखिए।
.....जागते रहो सोने वालों!
झटपट रंग बदल लेते हैं
कैसे मतलब वाले लोग।
मुंह के जितने भोले-भाले
मन के उतने काले लोग।
जब तक चुटकी में रहते हैं
जूठन को प्रसाद कहते हैं
चढ़ी कड़ाही, फिर तो पांचों
उंगली घी में डाले लोग।
यारों, ऐसे-वैसे लोग,
जाने कैसे-कैसे लोग,
हाथों की रेखा हो जाते हैं
पांवों के छाले लोग।
कसौटियों पर उल्टे-सीधे
उनके भी क्या खूब कसीदे
खुद ही खींच-खांच लेते हैं
अपने-अपने पाले लोग।
गूंगों की बस्ती में ठहरे,
थोड़े अंधे, थोड़े बहरे,
खेल रहे कुर्सी-कुर्सी
हाथों में लिये मशालें लोग।
दुश्मन हिंदुस्तान के।
मारो थप्पड़ तान के।
मिलें जो रात-बिरात में,
दिल्ली या गुजरात में,
पाकिस्तानी पांत में,
दाउद की बारात में,
मारो थप्पड़ के तान के.....
घूम रहे हैं देश में,
जोगीजी के भेष में,
कोई मुश का साथी है,
कोई बुश का नाती है,
मारो थप्पड़ तान के......
मीट-चिकन की बोरियां,
नंग-धड़ंग अघोरियां,
शैतानों की छोरियां,
गा रही हैं लोरियां,
मारो थप्पड़ तान के......
महंगाई की नोक पर,
ताल-तबेला ठोंक कर,
पैसा मारे भोंक कर,
चिदंबरम के जोक पर
मारो थप्पड़ तान के......
ओपेक की अठखेलियां,
झम्म झमाझम थैलियां,
साधू बने बहेलिया,
गाने लगे पहेलियां,
मारो थप्पड़ तान के....
नेता करे न चाकरी, अफसर करे न काम।
दास मलूका कह गए सबके दाता राम।देश के इन महान नमकहरामियों और संभ्रांत गुंडा-मवालियों के नाम अपनी भी कुछ पंक्तियां लोकतंत्र के योगदानस्वरूप.....महंगाई की मार से है जनता हैरान।
नेता तोड़ें कुर्सियां, अफसर तोड़ें तान।
हुई रोम में भुखमरी पर एफओ की मीट।
कहा जैक ने, शस्त्र पर मत कर कुकर-घसीट।
नाबदान में बह रहा है खरबों का अन्न।
उधर, विश्व में भूख से लाखों मरणासन्न।
शस्त्रों के बाजार पर लट्टू हैं जैकाल।
दो सौ खरब लुटा रहे डालर में हर साल।
बारह खरब न दे रहे लेने को खाद्यान्न।
लोग भूख से मर रहे. मस्ती में शैतान।
दुनिया में हैं दस बड़े जो सरमायेदार।
उनमें हिंदुस्तान के चार बड़े मटमार।
उड़ा रहे कुछ भेड़िये सारा मोहनभोग।
बीस टका में जी रहे सत्तर फीसद लोग।