धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों की स्थिति से संबद्ध न्यायधीश रंगनाथ मिश्र कमेटी की रिपोर्ट 18 दिसम्बर 09 को संसद में पेश कर दी गई। उल्लेखनीय है कि रंगनाथ मिश्र आयोग ने शिक्षा में मुस्लिम समुदाय को शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की है। रिपोर्ट में मुस्लिम और इसाई समुदाय को अनुसूचित जाति में शामिल करने की बात कही गई है यानी रिपोर्ट में हिन्दू दलितों की तरह मुसलमान और ईसाई दलितों को भी अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल कर वही सुविधाएं देने की सिफारिश की गई है। जस्टिस मिश्र की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट प्रधानमंत्री को 22 मई 07 को सौंपी गई थी। आरोप लगाए जा रहे थे कि वोट बैंक की राजनीति के तहत सरकार दो साल बीत जाने के बावजूद रिपोर्ट पेश करने से बच रही है।
अंदेशा है कि आयोग की रिपोर्ट में अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 15 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश पर अमल से केंद्र को बहुसंख्यक समुदाय का गुस्सा झेलना पड़ सकता है। इसी वजह से कांग्रेस इस रिपोर्ट को पेश करने से अब तक हिचकती रही थी। आधिकारिक रूप से पार्टी का कोई भी नेता या केंद्रीय मंत्री इस पर कुछ कहने को तैयार नहीं है, लेकिन निजी तौर पर कुछ ने ऐसे आयोग की प्रासंगिकता पर ही सवाल उठा दिया। इस साल लोकसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणा पत्र में कांग्रेस ने कहा था कि वह केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु की आरक्षण नीति को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। सच्चर के सहारे अल्पसंख्यकों का समर्थन पाने में सफल रही सरकार आखिर रंगनाथ मिश्र रिपोर्ट को लेकर अल्पसंख्यकों और पिछड़ों-दलितों के बीच उलझ गई है। रिपोर्ट की सिफारिशें मानने पर सरकार को अल्पसंख्यकों के लिए नौकरियों व शिक्षा में आरक्षण का दरवाजा खोलना होगा। यह अन्य वर्गो को मिल रहे आरक्षण के मौजूदा कोटे के तहत ही हो सकता है क्योंकि आरक्षण को पचास फीसदी पर सीमित रखने का सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है। रिपोर्ट में अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा और नौकरियों में जहां 15 प्रतिशत सीटें निश्चित करने की सिफारिश है, वहीं आरक्षण के अंदर आरक्षण की भी बात है। उससे भी बड़ी उलझन 1950 के उस राजकीय आदेश को खत्म करने की सिफारिश है जिसमें दलितों को हिंदू धर्म से जोड़कर देखा गया है।
आरक्षण की सीमा कोर्ट ने सुनिश्चित कर दी है। यह पचास प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकता है। लिहाजा अन्य पिछड़े वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण में ही अल्पसंख्यकों के लिए राह तलाशी जा सकती है। सरकार के लिए यह बड़ी परेशानी है। दरअसल ओबीसी को यह समझाना मुश्किल होगा कि उनके लिए आरक्षित स्थानों में कुछ कटौती की जाए। वैसे भी देश में ओबीसी की संख्या काफी है और उन्हें कोई नाराज नहीं करना चाहेगा। यदि ओबीसी मान भी जाएं तो इसका असर महिला आरक्षण पर पड़ेगा। गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल जैसे कई दल महिला आरक्षण के अंदर आरक्षण की मांग करते रहे हैं। ओबीसी के कोटे में अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण होते ही इन दलों का दबाव बढ़ेगा। जबकि कांग्रेस और भाजपा महिला आरक्षण के अंदर आरक्षण नहीं चाहती हैं। आयोग का तीसरा सुझाव अल्पसंख्यकों के लिए राजनीतिक रूप से काफी अहम है। दरअसल, 1950 के राजकीय आदेश में दलितों को सिर्फ हिंदू धर्म से जोड़कर देखा गया है। इसे वापस लेने का सुझाव है। इसके वापस होते ही अल्पसंख्यक दलितों के लिए न सिर्फ शिक्षा और नौकरियों में बल्कि संसद में आरक्षित सीट से जाने की भी राह खुल जाएगी। जाहिर है कि कुछ स्तर पर इसका भी विरोध होगा। सरकार को इन्हीं मुद्दों पर मशक्कत करनी पड़ सकती है। पिछले दिनों रिपोर्ट संसद में पेश न करने को लेकर राज्यसभा में जमकर हंगामा भी हुआ था। सांसदों का आरोप था कि मीडिया में रिपोर्ट लीक हो जाने के बाद उसे संसद में पेश नहीं किया जा रहा है।
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1 comment:
आभार।
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जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
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