Wednesday, December 16, 2009

अरे अब ऐसी कविता लिखो/ रघुवीर सहाय

अरे अब ऐसी कविता लिखो

कि जिसमें छंद घूमकर आय

घुमड़ता जाय देह में दर्द

कहीं पर एक बार ठहराय

कि जिसमें एक प्रतिज्ञा करूं

वही दो बार शब्द बन जाय

बताऊं बार-बार वह अर्थ

न भाषा अपने को दोहराय

अरे अब ऐसी कविता लिखो

कि कोई मूड़ नहीं मटकाय

न कोई पुलक-पुलक रह जाय

न कोई बेमतलब अकुलाय

छंद से जोड़ो अपना आप

कि कवि की व्यथा हृदय सह जाय

थामकर हंसना-रोना आज

उदासी होनी की कह जाय ।

3 comments:

अजय कुमार झा said...

वाह वाह जी वाह वाह ,
मुंह से यही है बाहर आय,
इश्वर आपसे अईसन ही
कविता बार बार लिखवाय ॥

Randhir Singh Suman said...

nice

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut sundar!!