ऐसा शायद पहली बार लगता है कि चुनाव पूर्व सबसे बड़ा सवाल हो चुका है कौन बनेगा प्रधानमंत्री. अपने-अपने तर्क हैं और अपनी-अपनी अटकलें. तीसरे मोरचे के गठन के बाद भारत के भविष्य के भाग्य विधाता के नामों की कतार में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती का नाम सर्वाधिक चर्चाओं में तैरने लगा है. यूपीए और एनडीए की अंदरूनी बेचैनी पहले से ज्यादा बढ़ी है. इतनी अनिश्चितता है कि चुनाव नतीजे आने से पहले कुछ भी कहना मुश्किल होगा कि किसकी सरकार बनेगी और कौन होगा प्रधानमंत्री.
इन वेटिंग का यह मुहावरा तो सिर्फ लालकृष्ण आडवाणी के लिए चलन में है लेकिन फेहरिस्त फैलाएं तो लाइन में लगे नजर आते हैं राहुल गांधी शरद पवार लालू यादव रामविलास पासवान मायावती मुलायम सिंह यादव एचडी देवेगौड़ा नरेंद्र मोदी भैरोसिंह शेखावत आदि आदि . के भीतर सवाल उठाए जा रहे हैं। एक सवाल बुजुर्ग नेता भैरोंसिंह शेखावत ने उठाया है। उन्होंने आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताने पर एक तरह से ऐतराज जताया है। उधर देश के दो बडे़ उद्योगपतियों ने गुजरात में राज्य के विवादग्रस्त मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का योग्यतम उम्मीदवार घोषित कर दिया था। देश के कुछ उद्योगपतियों को मोदी भा रहे हैं तो इसे उनकी व्यक्तिगत पसंद कहा जा सकता है। लेकिन खुद बीजेपी को यह बात पसंद नहीं। तीन दिन की चुप्पी के बाद मोदी कहते हैं कि आडवाणी ही बीजेपी के अधिकृत भावी प्रधानमंत्री हैं। बीजेपी समेत पूरे संघ परिवार में मोदी की इस तीन दिनी चुप्पी को समझने की कवायद चलती रही। इस बीच एक और शिगूफा सामने आया। एक सर्वेक्षण में 226 वरिष्ठ कॉर्पोरट अधिकारियों से जब देश के भावी प्रधानमंत्री के बारे में राय ली गई तो उद्योग जगत से जुड़ी इन हस्तियों में से 25 प्रतिशत ने कांग्रेस के मनमोहन सिंह को अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखने की इच्छा जताई। जबकि 23 प्रतिशत आडवाणी के पक्ष में दिखे। मोदी को उद्योग जगत के 12 प्रतिशत शीर्ष अधिकारी ही प्रधानमंत्री पद के लायक समझते हैं। राहुल गांधी को इस सर्वेक्षण में 14 प्रतिशत वोट मिले थे नरेंद्र मोदी चौथे नंबर पर पाए गए। आखिर कौन बनेगा प्रधानमंत्री जिस लोकतांत्रिक प्रणाली में हम विश्वास करते हैं उसके अनुसार इसका उत्तर आज नहीं दिया जाना चाहिए। हमारी संसदीय प्रणाली में व्यवस्था यह है कि चुने हुए सांसद प्रधानमंत्री का चुनाव करते हैं। हमारी दलीय व्यवस्था में बहुमत वाला दल या दलों का कोई समूह अपने भीतर किसी नेता को चुनता है तो प्रधानमंत्री बनता है। चूंकि हमारे देश में एक लंबे तक कांग्रेस का शासन रहा है और कांग्रेस पार्टी में पहले जवाहरलाल नेहरू का और फिर नेहरू परिवार का वर्चस्व रहा इसलिए यह तय माना जाता रहा कि यदि कांगेस जीती तो नेहरू या इंदिरा ही प्रधानमंत्री बनेंगे। तब विरोधी दल इस प्रथा को अ-जनतांत्रिक बताया करते थे। वैसे यह कोई नियम नहीं है कि प्रधानमंत्री के नाम की घोषणा पहले नहीं हो सकती। यह मात्र एक परंपरा है कि मतदाता के अधिकार को सम्मान दिया जाए। वह तय करे कि प्रधानमंत्री कौन होगा। अब प्रधानमंत्री पद के दावेदार का नाम सामने रखकर मतदाता से साफ-साफ पूछा जा रहा है। राहुल गांधी का नाम पहले भी आया था। तब खुद सोनिया गांधी ने कहा था कि राहुल को और अनुभवी होने की जरूरत है। बावजूद इसके अर्जुन सिंह जैसे अनुभवी नेता ने भावी प्रधानमंत्री के रूप में राहुल का नाम उछाला। तब इसे चापलूसी कहा गया था। फिर प्रणव मुखर्जी जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी ने इस आशय की बात कही। इसे किसी ने चापलूसी नहीं कहा। तो क्या कांग्रेस जीती तो राहुल प्रधानमंत्री बनेंगे इस प्रश्न के उत्तर में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का उदाहरण सामने रखकर युवा व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने की बात कही जाती है। तीसरे विकल्प के दावेदार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को अपेक्षाकृत युवा होने के साथ-साथ दलित बताकर प्रधानमंत्री पद का दावेदार सिद्ध करने में लगे हैं। आज तो हम सिर्फ इस सवाल का जवाब खोज सकते हैं कि प्रधानमंत्री कैसा होना चाहिए
सुप्रीमो उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती कहती हैं कि यदि सर्व समाज उन्हें वोट दे तो कोई भी ताकत उन्हें प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक सकती। एक आंदोलन शुरू हो चुका है जो उन्हें शीर्ष पद पर ले जाएगा और उनकी आकांक्षा पूरी हो जाएगी। यदि मैं उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री बन सकती हूँ तो मेरा मानना है कि एक दिन हमारे लोगों के सपने निश्चित तौर पर सच होंगे। रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव कहते हैं कि मायावती प्रधानमंत्री बनने की सोच रखती हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
शरद पवार
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार खुद के मराठी होने के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाते हुए कहते है कि एक महाराष्ट्रीयन को भी प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलना चाहिए आंध्र प्रदेश गुजरात और कर्नाटक जैसे कई प्रदेशों के नेताओं को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला है अब महाराष्ट्र को भी अवसर मिलना चाहिए यूपीए के घटक चुनाव के बाद पीएम का चुनाव करेंगे अमर सिंह कहते हैं कि समाजवादी पार्टी को प्रधानमंत्री के रुप में शरद पवार को स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं है
लालू प्रसाद यादव
रेल मंत्री लालूप्रसाद यादव कहते हैं कि हर इंसान के उद्देश्य और महत्वाकांक्षाएं होती हैं इसमें कुछ भी गलत नहीं है। मुझे प्रधानमंत्री बनना है और मैं बनूंगा लेकिन राजनीति में सब कुछ तय होता है। कैसे एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल संयुक्त मोर्चे के शासन के दौरान प्रधानमंत्री बने। अरे भई मैं भी तो प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं सभी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं लेकिन ऐसे ही थोड़े कोई प्रधानमंत्री बन जाता है। लोकसभा चुनावों के बाद साफ हो जाएगा कि कौन बनेगा पीएम।
मुलायम सिंह यादव
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से इनकार करते हैं यादव कहते हैं कि एसपी कांग्रेस के साथ खड़ी है और आगे भी कांग्रेस का साथ देती रहेगी। हम कांग्रेस के साथ संबंधों को लेकर काफी ईमानदार हैं। हमारे बीच दूरिया और मतभेद नहीं हो सकते।लालकृष्ण अडवानी अथवा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए वे किसी का भी साथ देने को तैयार हैं। मायावती की प्रधानमंत्री की दावेदारी पर वह कहते हैं कि दावेदार तो महारानी बन गई हैं अब काहे की दावेदारी।
रामविलास पासवान
केन्द्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान कहते हैं कि अगर किसी दलित को ही प्रधानमंत्री बनाया जाना है तो इस ओहदे के लिए वे सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। उन्होंने अपने लम्बे राजनीतिक सफर में कई मंत्रालयों का कामकाज सम्भाला और उसे बेहतरीन ढंग से अंजाम दिया है। कोई इच्छा पालने से क्या फर्क पड़ता है। प्रधानमंत्री का पद रिक्त नहीं है फिर भी लोग अपनी अर्जियाँ देते ही जा रहे हैं। मेरी अर्जी तो वहाँ काफी समय से पड़ी है। अभी चुनाव तो हो जाने दीजिए।
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1 comment:
भविष्य के अंधकार में क्या छिपा है ये तो वक्त ही बताएगा पर, योग्यता हो न हो किस तरह लोग कैसी कैसी आकांक्षा कर लेते हैं, ये सोंचने का विषय है. आज के कैसे सर वैश्विकरण के युग में गुथियों को समझने सुलझाने के लिए एक योग्य आदमी का नेतृत्व हिन् देश को आगे ले जा सकता है.
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