टिकट का विकट खेल हर पार्टी में चल रहा है. पार्टियों के जुझारू नेता हाशिये पर है. मालदार और माफिया हावी हैं. टिकट मालदारों और माफिया को इसलिए दिए जाते हैं कि मालदार प्रत्याशी वोट खरीद लेगा और माफिया प्रत्याशी डरा-धमकाकर वोट लूट लेगा. अब चुनाव ईमानदार और जनता के लिए, देश के लिए कुर्बानी का जज्बा रखने वाले नहीं लड़ते हैं. ज्यादातर चोर, कातिल लड़ते हैं. लोकसभा के आगामी चुनाव में भी उन्हीं बदमाशों का बोलबाला होगा.
मुद्दा इस चुनाव में भी जनता की ओर से नहीं, नेताओं और पार्टियों की ओर से तय किए जाएंगे. अर्थात महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी, मंदी, आतंकवाद मुद्दा नहीं होंगे. मुद्दा होंगे मंदिर, मस्जिद, मुस्लिम, हिंदू, सिख, ईसाई, दलित, सवर्ण, प्रधानमंत्री का पद. मतदाताओं के बीच ऐसे लोगों की तादाद अब न के बराबर बची है, जो पब्लिक के मुद्दे को ऐसे मौके पर जोरदार तरीके से उठाने के लिए आगे आएं. जिन्हें चुनाव में बढ़चढ़ कर जनता का पक्ष लेना चाहिए, वे मतदान के दिन वोट डालना भी अपनी हेठी समझते हैं. तो फिर सवाल उठता है कि जनता के मुद्दे की लड़ाई लड़ेगा कौन?
1 comment:
"हा हा हा मजेदार कार्टून और आलेख.."
Regards
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