Tuesday, January 20, 2009
चाय के प्याले में चिट्ठाचोरी का उफान
दिल्ली में आईटीओ पर परसों दो चिट्ठाचोरों में तू-तड़ाक हुई. पता नहीं किसने, किसकी पोस्ट चुरा कर अपने चिट्ठे पर चिपका ली थी. मुझे भी चिट्ठागीरी का शौक है, सो, उनकी बात शुरू में ही पकड़ में आ गई. और लोगों को तो कुछ समझ में भी नहीं आया कि बात क्या हो गई. चाय की दुकान पर पहले दोनों में हंसी-खुशी से मुलाकात हुई. चुस्कियों के साथ हालचाल, फिर एक-दूसरे के लिखने-पढ़ने पर बातचीत आगे बढ़ी. अचानक न जाने क्या हुआ कि दोनों जनाब उठ खड़े हुए और अपने-अपने चाय के कप बगल की बेंच पर टिकाकर जोर-जोर कॉलर उचकाने लगे. इससे पहले कि मजमा लगता, बात लोगों के कुछ समझ में आती, दोनों चौराहे की ओर बढ़ लिए. उनके चले जाने के बाद चायवाले दुकानदार ने पूछा, भाई साब क्या बात हो गई? आए तो दोनों हंसी-खुशी से थे, किस बात पर भिड़ लिए...............! उसे कोई जवाब देने की बजाय सिगरेट का कश लेते अपुन भी चुपचाप खिसक लिया. भला उसे क्या बताता और किस मुंह से बताता कि दोनों विचारवान लोग थे. चाय के प्याले में चिट्ठाचोरी का उफान आ गया था.
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2 comments:
"ओह ये किस्सा चाय की दुकान का ही था न??????"
Regards
तुलसी इ संसार में भांति भांति के लोग
क्या कह सकते है . वैसे अपने मजेदार वाक्य बताया . चुरा ली तो चुरा ली क्या कोई जायजाद चुरा ली जो लड़ बैठे . हा हा हा
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