Sunday, November 30, 2008

ठाकुर प्रसाद सिंह, वसीम बरेलवी, भावना कुंअर



भावना कुंअर की रचना

लम्हा इक छोटा सा फिर उम्रे दराजाँ दे गया
दिल गया धड़कन गयी और जाने क्या-२ ले गया।
वो जो चिंगारी दबी थी प्यार के उन्माद की
होठ पर आई तो दिल पे कोई दस्तक दे गया ।
उम्र पहले प्यार की हर पल ही घटती जा रही
उसकी आँखों का ये आँसू जाने क्या कह के गया।
प्यार बेमौसम का है बरसात बेमौसम की है
बात बरसों की पुरानी दिल पे ये लिख के गया ।
थी जो तड़पन उम्र भर की एक पल में मिट गयी
तेरी छुअनों का वो जादू दिल में घर करके गया।
ठाकुर प्रसाद सिंह का गीत

पाँच जोड़ बाँसुरी
बासन्ती रात के विह्वल पल आख़िरी
पर्वत के पार से बजाते तुम बाँसुरी
पाँच जोड़ बाँसुरी
वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो रहा
मन उठ चलने को हो रहा
धीरज की गाँठ खुली लो लेकिन
आधे अँचरा पर पिय सो रहा
मन मेरा तोड़ रहा पाँसुरी
पाँच जोड़ बाँसुरी

वसीम बरेलवी की गजल

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है।
नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है।
थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है।
बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है।
सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है।



2 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

ek se badka rek. narayan narayan

नीरज गोस्वामी said...

क्या कहने हैं.....वाह. किसकी तारीफ करें...सभी लाजवाब.
नीरज