Sunday, September 7, 2008

नागार्जुन, निदा फाजली और राजेश जोशी

नागार्जुन की एक लोकप्रिय रचना

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
  कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास 
  कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
  कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त ।
   दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
   धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
   चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
   कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनो के बाद।





राजेश जोशी की लोकप्रिय रचना

कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्‍चे काम पर जा रहे हैं

सुबह सुबह

बच्‍चे काम पर जा रहे हैं

हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह

भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना

लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह

काम पर क्‍यों जा रहे हैं बच्‍चे?

क्‍या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें

क्‍या दीमकों ने खा लिया हैं

सारी रंग बिरंगी किताबों को

क्‍या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने

क्‍या किसी भूकंप में ढह गई हैं

सारे मदरसों की इमारतें

क्‍या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन

खत्‍म हो गए हैं एकाएक

तो फिर बचा ही क्‍या है इस दुनिया में?

कितना भयानक होता अगर ऐसा होता

भयानक है लेकिन इससे भी ज्‍यादा यह

कि हैं सारी चीज़ें हस्‍बमामूल

पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजते हुए

बच्‍चे, बहुत छोटे छोटे बच्‍चे

काम पर जा रहे हैं।


निदा फाजली की लोकप्रिय रचना

मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में
मुझको पहचानते कहाँ हैं लोग

रोज़ मैं चाँद बन के आता हूँ
दिन में सूरज सा जगमगाता हूँ

खनखनाता हूँ माँ के गहनों में
हँसता रहता हूँ छुप के बहनों में

मैं ही मज़दूर के पसीने में
मैं ही बरसात के महीने में

मेरी तस्वीर आँख का आँसू
मेरी तहरीर जिस्म का जादू

मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में
मुझको पहचानते नहीं जब लोग

मैं ज़मीनों को बे-ज़िया करके
आसमानों में लौट जाता हूँ

मैं ख़ुदा बन के क़हर ढाता हूँ

3 comments:

सतीश पंचम said...

नागार्जुन को पढना सुखद लगा।

Udan Tashtari said...

तीनों बेहद उम्दा रचनाओं को पढ़वाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार.

Satyendra Prasad Srivastava said...

तीनों रचनाएँ जबर्दस्त।