Monday, July 28, 2008

चक्कर चौधरानी का

न राजा का, न रानी का,
चक्कर चौधरानी का।

मची थी धकधक्की
लगी थी टकटक्की
चक्का वाली चक्की
रह गई थी भौचक्की
तो गांधी के फोटू वाले नोट बांट-बाटकर
सलामत किया था राजपाट,
न दीदा का, न पानी का,
चक्कर चौधरानी का।

कहीं पिल्ला, कहीं पिल्ली,
कहीं पटना, कहीं दिल्ली,
चहुंओर मजा मारि रहे
खादी शेखचिल्ली तो बड़े-बड़े बिल्लों पर
भारी एक बिल्ली,
न नेहरू का, न गान्हीं का
चक्कर चौधरानी का।

अमरीकी ...ड़वे और हिटलर के पट्ठे।
चाट गए लोकतंत्र चट्टू तिलचट्टे।
दाएं तिरंगा और बाएं हाथ कट्टे।
आवैं चुनाव में तो मारि-मारि फट्ठे,
कुर्सी-बहादुरों के करों दांत खट्टे।
कूकरों की गर्दन में बांधकर पट्टे
घुमाओ पूरे गांव, पिलाओ सड़े मट्ठे।
क्योंकि
सोना का, न चानी का
चक्कर चौधरानी का।

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छी तुकबन्दी की है।लेकिन ये तो बताओ ये चौधरानी कौन है?:)

Udan Tashtari said...

सही है.

बालकिशन said...

वाह!
बहुत खूब.
हा हा हा .
मज़ा आ गया