Wednesday, June 11, 2008
देश-देश में उसके खाते
चुप्पी-चुप्पा,
फूल के कुप्पा।
चुप्पी बोली-
मैं ना बोलूं,
चुप्पा तेरा भेद न खेलूं,
तू घुरघुप्पा.....चुप्पी-चुप्पा।
चुप्पा बोला-
मैं ना बोलूं,
चुप्पी तेरा भेद न खोलूं,
तू घरफुक्का.....चुप्पी-चुप्पी।
रोज-रोज की
चुप्पी-चुप्पा
देख-देखकर
ऊब गये तो
बोले उनके फुफ्फी-फुफ्फा-
क्या तुम सब हो साहब-सुब्बा...चुप्पी-चुप्पा।
चुप्पा के
दुनिया में नाते,
देश-देश में उसके खाते,
चुप्पी की
मुट्ठी में कॉलर,
चुप्पी की मुट्ठी में डालर,
जनता की
थैली में दोनों खेल रहे हैं रुप्पी-रुप्पा.....चुप्पी-चुप्पा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
मारक अंदाज/
वाह साब वाह बहुत तीखा कटाक्ष.
आपका लेखन गजब है.
Post a Comment